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ध्यान ः साधना और सिद्धि
पाएगा?
ध्यान निश्चय ही बहुत सहजता से घटित होता है । यह घटाने से नहीं, अनायास ही घटित होता है । ध्यान एक आकस्मिक घटना है । घटना होता है तो दो पल में घटित हो जाता है । ध्यान का गुर हाथ न लगे तो वर्षों तक ध्यान से गुजरने के बावजूद अपने वास्तविक परिणाम नहीं दे पाता है। पर ध्यान घटित होगा कैसे आखिर उसी को न जो ध्यान के मार्ग पर चल रहा है, ध्यान को जी रहा है । आखिर, बादल अपना जल उसी गागर में उतार सकेगा जिसका मुँह उसकी ओर खुला होगा।
मैं ध्यान मार्ग को बहुत सहजता से जीता हूँ और अपनी ओर से आप सबको भी इसे सहजता से जीने का अनुरोध कर रहा हूँ । जैसे पिशाब करना, भोजन करना, नींद लेना, आमोद-प्रमोद करना सहज क्रिया है, ऐसे ही ध्यान को भी हमें बड़ी सहजता के साथ अपने से जोड़ लेना चाहिये । मान लो अगर हम अपने शारीरिक, मानसिक या पारिवारिक कारणों से जीवन के साथ सहज नहीं भी हैं तब भी आप ध्यान में डुबकी लगाने से वंचित न रहें। ध्यान के मानसरोवर में लगायी गयी एक डुबकी आपकी असहजता को मिटा देगी और आप जीवन के प्रति फिर से बहुत सहज हो उठेंगे । एक ऐसी सहजता कि जिसमें अमृत का आस्वादन हो, प्रसन्नता का पुष्प हो, आनन्द की फुलवारी हो।
ध्यान विश्राम है, अपने-आप में विश्राम । ध्यानी को प्रगति की पिपासा नहीं होती । जिसे प्रगति की महत्वाकांक्षा होती है, वह ध्यानी नहीं होता। प्रगति तो अपने आप होती है। प्रगति के द्वार अपने-आप खुलते हैं। ध्यान स्वयं में विश्राम है, अपनी उच्च क्षमताओं के साथ अपना सम्बन्ध है । मेरे देखे, जब भी तुम ध्यान की तन्मयता से जगत की ओर आँख खोलोगे, तुम्हारे हृदय को सुकून मिलेगा, तुम्हें अपने सामने प्रगति के क्षितिज उघड़ते हुए नजर आएंगे।
प्राचीन युग में तो आत्म-साधना के लिए लोग कन्दराओं में, एकाकी बैठकर ध्यान किया करते थे। अब शिविरों में सामूहिक ध्यान के प्रयोग करवाए जा रहे हैं। ध्यान सामूहिक होना चाहिए या व्यक्तिगत ?
ध्यान मनुष्य के मन और उसकी चेतना का चिरन्तन समाधान है। ध्यान को मैं अतीत में हो चुके महान् लोगों के द्वारा इजाद किये गये मनोविज्ञान का बेहतरीन
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