SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक डुबकी अपने भीतर २३ व्यग्रता क्या है और वह कैसे मिटे ? समग्रता के अभाव का नाम ही व्यग्रता है । व्यक्ति किसी बिन्दु या वस्तु के संबंध में समग्रता से नहीं सोचता । उसके सोच में संतुलन नहीं होता । इसीलिए व्यग्रता आती है । इसे ऐसे समझें। आप थके-क्लांत से घर पहुँचते हैं और पत्नी दरवाजे पर ही आपकी माँ की आपसे शिकायत करने लगती है और आप बिना माँ की बात सुने ही उन्हें अंट-संट कहने लगते हैं यह व्यग्रता है । हाँ, अगर आपने पत्नी की बात के साथ माँ का पक्ष भी जाना होता, उनकी बात उतनी ही सहानुभूति के साथ सुनी होती तो आप समुचित संतुलन के साथ अपनी बात कह पाते । व्यग्रता वहीं आती है जहाँ व्यक्ति अपने सोचने के साथ या निर्णय से पहले पूर्वापर संबंध नहीं जोड़ पाता । व्यग्रता तभी झलकती है जब आक्रोश में आकर व्यक्ति निर्णय ले लेता है । व्यग्रता अन्तर्मन का दैत्य है और समग्रता जीवन का देव । हम व्यग्रता के दैत्य से मुक्त हों । व्यग्रता घातक है, अपने लिए और औरों के लिए । व्यग्रता से मुक्त होने के लिए सदा समग्रता की दृष्टि रखें । निर्णय से पूर्व हर बात का पहला-पीछा पहलू सोच लें। विचारों और सोच को सदा संतुलित रखें । तीसरा सुझाव यह है कि सदा माधुर्य और मुस्कान से भरे रहें । व्यग्रता स्वतः समग्रता में बदलती जाएगी। ध्यान के लिए क्या निरन्तर प्रयास करते रहना चाहिये या जो सहजता में हो जाए वह उचित है। कृपया बतायें ध्यान विश्राम है या प्रगति, क्योंकि विश्राम अनायास/सहजतया होता है और प्रगति के लिए परिश्रम करना पड़ता है। जीवन का कोई भी पहलू क्यों न हो, वह जितना सहजता से सम्पादित हो सके, उतना ही श्रेष्ठ है । पहलू चाहे ध्यान का हो या ज्ञान का, व्यवसाय का हो या भोजन बनाने का । हर पहलू के साथ सहजता जरूरी है। पर सहजता आती है परिणाम के तौर पर। प्रारम्भ में तो किसी भी चीज को आत्मसात् करने के लिए श्रम भी करना पड़ता है और अभ्यास भी । पहले चरण में अभ्यास किया जाता है लेकिन अभ्यास का परिणाम निकल आने पर वह मार्ग बहुत सहज हो जाता है। सहजता की डगर पर कदम रखते ही तो श्रम और अभ्यास व्यर्थ लगता है, लेकिन अभ्यास से गुजरे बगैर सहजता आती ही नहीं है। एम.ए. पढ़ चुके व्यक्ति के लिए बारहखड़ी बहुत सामान्य चीज हो जाती है, पर सवाल यह है कि बारहखड़ी को सीखे बगैर क्या कोई एम.ए. या एम.फिल. तक पहुँच Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy