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________________ ११४ ध्यानः साधना और सिद्धि चलने की, चिता से चैतन्य की ओर उठने की। यह प्रयोग ध्यानयोग का ही चरण है । पहले चरण में हम दस मिनट तक अपने आपको श्वास पर केन्द्रित करें। अपनी आती-जाती श्वास पर जन्म और मृत्यु का, प्रतिक्षण हो रही क्षणभंगुरता को निहारें । श्वास की गति मन्द और चित्त शांत । श्वास को देखने में इतने दत्तचित्त हो जाओ कि श्वास अर्जुन की आँख बन जाए। सिवा श्वास के और कुछ दिखाई न दे । समग्रता से श्वास का निरीक्षण। दूसरे चरण में अपने आपको पाँव के अंगुठे पर केन्द्रित करो। यह चरण लेटे हुए पूरा हो, तो ज्यादा बेहतर । और जब लगे कि पाँव की चेतना और तुम्हारी सजगता की चेतना एक लय हो गई है, तो जैसा कि शिव ने कहा है कि तुम अपने अंगूठे से जलती हुई अग्नि को ऊपर उठता देखो । तुम पाओगे कि तुम्हारे पंजे जल रहे हैं और पंजों की जगह राख बची है । तुम अग्नि को धीरे-धीरे ऊपर उठने दो-अपने होश को अग्नि पर केन्द्रित रखे हुए । अग्नि में सब कुछ जलता जाए—पाँव, जंघा, पेट, हाथ, छाती, गला, और अन्त में मस्तक तक पहुँच जाओ। वह भी जल जाए । तुम्हारी ऐसी आत्मदशा बन जाए कि काया और उसमें समाया असत् और तमस् सब कुछ जल चुका है । मानो, तुम चिता पर चढ़ाए जा चुके हो और चिता जल गई है । सब कुछ राख हो गया है। इस प्रयोग का तीसरा चरण होगा कि तुम देह से बाहर आकर अपनी जली देह को देखो । विदेह-दृष्टि से देह को देखो। तुम्हारी यह भाव-यात्रा तुम्हें बहुत निर्मल कर चुकी है । यह मृत्यु और अग्नि-संस्कार तुम्हें अमृत और चैतन्य कर चुकी है । तुम स्वयं में मुक्ति को साकार होते हुए पाओगे । हाँ, तब तुम जीते जी मुक्त हो जाओगे। शरीर रहेगा, पर तुम देहातीत हो जाओगे। अगर यह प्रयोग तुम कुछ दिन तन्मयतापूर्वक सम्पादित कर लो, तो तुम तुम न रहोगे; तम वह हो जाओगे, जैसा होने के लिए तुम परमात्मा से प्रार्थना किया करते हो । हाँ, हमें मुक्ति चाहिए, मृत्यु से पहले मुक्ति । वह मुक्ति नहीं, जो मरने के बाद मिले । मुक्ति वह हो, जिसका रसास्वादन हमें जीते-जी उपलब्ध हो। आनन्द मनाओ, मस्त रहो । पुलक और विदेह-भाव से, आओ हम कुछ गुनगुनाएँ, अपने में आएँ अब कबीरा क्या सिएगा, जल रही चादर पुरानी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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