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________________ मुक्ति हो, मृत्यु नहीं ११३ अपनी मूर्ति रूप प्रतिकृति से मल्लि ने उन छः राजकुमारों को प्रतिबोध दिया। देह की नश्वरता और अपवित्रता का भान कराया, देह में रहने वाले विदेह का ज्ञान कराया। और कहते हैं कि मल्लिकुमारी ने अन्त में संन्यास ले लिया और वे छः राजकुमार भी अपने राजपाट का त्याग कर उसके अनुगामी बने। शरीर का मोह हट जाए चित्त और विचारों से । केवल सजगता और सहजता आए, तो जीवन की भाव-चिकित्सा हो जाए। शरीर से तादात्म्य विच्छिन्न हो और आत्मलीनता बढ़े, यही जीवन की उन्नति का परम सूत्र है । हम उस उन्नत सूत्र के स्वामी बनें; यही सजगता चाहिए, यही शुभ दृष्टि चाहिए। ऊपर उठो, ऊपर उठो! क्योंकि तुम इंसान हो, परमात्मा की जान हो, तुम गगन से और भी, ऊपर उठो, ऊपर उठो। वृत्ति पाशव छोड़ दो, वेग को तुम मोड़ दो, हे मनुज के वंशधर, ऊपर उठो, ऊपर उठो। तुम चढ़ो दिग्मेरु पर, तुम चढ़ो हो अग्रसर, धूम्र-वर्षा-मेघ से __ ऊपर उठो, ऊपर उठो। मनुष्य ऊपर उठे, मृत्यु से, मृण्मय से, असत् से, तमस् से । व्यक्ति बढ़े अमर्त्य की ओर, असत् से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, देह से विदेह की ओर । तुम जितने आकाश की ओर उठोगे, माटी का मोह नीचे छूटता-छिटकता जाएगा। तुम जितना माटी पर केन्द्रित रहोगे, ज्योति से उतने ही दूर बने रहोगे। आओ, आज हम प्रयोग करते हैं अपने आप पर मृण्मय से चिन्मय की ओर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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