SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 122
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुक्ति हो, मृत्यु नहीं की प्रतिक्रिया लेकर लौटेगी, कुछ कहा नहीं जा सकता । लेकिन लौटेगी अवश्य, इतना ध्यान रखना । इसलिए दोनों स्थितियों में चित्त में शांति बनी रहे, मस्ती बनी रहे यही जीवन में मुक्ति को जीना है । शरीर तो यही रहेगा, शरीर के अहसास भी रहेंगे, पर हम जो साक्षी और तटस्थ बनकर जीते हैं, जानते हैं भूख किसे लगी । शरीर को भोजन दे रहे हैं न कि मैं भोजन कर रहा हूँ । शरीर को सर्दी-गर्मी का अहसास हो रहा है, इसलिए उसकी व्यवस्था की जा रही है। इसका 'मैं' से संबंध नहीं है । 'मैं' तो निर्वस्त्र हूँ, मेरा कैसा कपड़ा । जहाँ साक्षी इतना प्रखर हो जाए वहाँ अगर वह क्रोध और भोग भी करेगा तो साक्षी होगा कि मन उद्विग्न हुआ, वही जवाब भी दे रहा है, मैं तो उस मन का भी दृष्टा हूँ । शरीर के प्रति, विचारों के प्रति तटस्थता व्यक्ति को मुक्ति की ओर बढ़ाती है । उसकी मृत्यु नहीं, मुक्ति होती है । आत्म - साक्षी क्रोध - कषायों का भी साक्षी भर रहता है 1 1 पीछे बचेगा क्या ? माटी की काया का पुतला भर । फिर देह के प्रति आसक्ति कैसी ! रंग और रूप के प्रति मूर्च्छा कैसी ! चमड़ी के भीतर खून सबका लाल है और देह की अन्त्येष्टि हो जाने पर राख सबकी काली है । गोरी देह की राख भी काली और काली देह की राख भी काली ही । मृत्यु सबके रंगों को समान कर देती है, पंच तत्त्वों को फिर से बिखेर डालती है । साधक जागे, देह के पार झाँके, विदेह का रूप निहारे । . होश जगे, सजगता आए स्वयं को शरीर से अलग देखने की, शरीर के भाव से, चित्त की तरंग से अलग देखने की । यह बोध जागे कि नियामक और नियमन करने वाला मैं नहीं हूँ । ‘स्व' का तादात्म्य शरीर से टूटे । तब एक सार्थक मनुष्य और मुक्त आत्मा का जन्म होगा । कभी लेटे हो तो अपने शरीर को देखो, बाह्य शरीर के साथ अंदर के सूक्ष्म शरीर को देखो, द्रव्य शरीर के साथ अपने भाव - शरीर को देखो, अपने से अलग । तब पाओगे कैसे निर्मलता आती है, अनासक्ति और निर्लिप्तता घटित होती है, अन्तर- स्वास्थ्य की अनुभूति होती है । १११ सुनने वालों सुनो ध्यान से, सारे आज गरीब-अमीर । सबकी ही तस्वीर रहेगी, नहीं रहेगा सदा शरीर ॥ Jain Education International मल्लिकुमारी के बारे में कहा जाता है कि मल्लिकुमारी विवाह योग्य हो चुकी थी । उसके रूप-सौन्दर्य - गुणों की सर्वत्र चर्चा होती थी । इस अद्वितीय सुन्दरी से विवाह I करने के लिए कई राजकुमार इच्छुक थे । सम्राट पिता के पास विभिन्न नरेश कुमारों के संदेश आ चुके थे । यहाँ तक कि छः राजकुमार तो नगर-कोट पर एकत्र हो गए कि वे For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy