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________________ ध्यान : साधना और सिद्धि पर डंडा मार डंडा छोड़ भाग खड़ा हो तो उसे पुकार कर कहें कि भैया जाता कहाँ है अपना डंडा तो लेता जा । बीते वर्ष में पचास लाख का लाभ हो गया, तो उसे भी मस्ती सेज लिया और इस वर्ष पच्चीस लाख का घाटा लग गया तो उसमें भी उसी मस्ती को बरकरार रखने का नाम मुक्ति को जीना है । दोनो स्थितियों में रहनेवाली समरसता का नाम ही मस्ती और मुक्ति है । दोनों हालातों में मस्ती, दोनों स्थितियों में सहजता, सरलता और समरसता हो । 1 ११० I जीवन में अच्छी और बुरी स्थितियाँ सदा शाश्वत नहीं रहती हैं। जीवन तो कालचक्र का क्रम है । कभी नीचे का हिस्सा ऊपर, और कभी ऊपर का हिस्सा नीचे आ जाता है । फिर हम दोनों स्थितियों में एक समान क्यों न जिएँ । नहीं तो एक तिनका भी मनुष्य की अकड़ को गिराने के लिये पर्याप्त है । अनुकूल परिस्थितियाँ पाकर अहंकार-ग्रस्त होना मनुष्य का पतन है । प्रतिकूल परिस्थितियाँ आने पर चित्त में समानता और संतुलन की भावना विद्यमान रहे तो वह प्रतिकूलता भी वरदान है । जो प्रतिकूलताओं का हँसते-हँसते स्वागत कर लेता है, उसी का नाम साधना है। जीवन में जहाँ चित्त प्रतिक्रिया - शून्य हो जाए, वहीं जीवन में मुक्ति को जिया जा सकता है I भला, किसी के क्रिया-प्रतिक्रिया करने से हम क्यों प्रभावित हों ! गीत और गाली दोनों के साक्षी रहें । आइने पर किसी के आने-जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता । तुम सामने होते हो, आइना तुम्हें प्रतिबिम्बित कर देता है; तुम हट जाते हो आइना खाली हो जाता है । तुम ही उससे प्रभावित होते हो। उसमें देख-देखकर अपने को सजाते-सँवारते हो । आइने को तुमसे कुछ लेना-देना नहीं है । और न किसी के पास समय है कि वह तुम्हें देखे । तुम खुद ही अपना अवलोकन करते रहते हो । दुनिया को तुमसे कोई मतलब नहीं है । वह तो जैसी है चलती रहती है । तुम ही उछलकूद करते रहते हो । सारी उठापटक तुम्हारी अपनी है। जैसा हम बोलेंगे, वही प्रतिध्वनित होगा | जैसी हमारी क्रिया होगी, वैसी ही प्रतिक्रिया होगी । सब लौटकर आता है आज नहीं तो कल । चौगुना होकर वापस आता है । जैसे तुम जंगल में आवाज करते हो तो चारों ओर से प्रतिध्वनि आती है। ऐसा ही अपने जीवन के साथ, हर व्यवहार- बरताव के साथ समझो । कहा जाता है महावीर के कानों में कीलें ठोकी गई थीं, लेकिन महावीर ने बुरा नहीं माना । क्योंकि उन्हें बोध हो चुका था कि ये कीलें उस जन्म का परिणाम है जिसमें उन्होंने अपने ही चाकर के कानों में गर्म सीसा डलवाया था । ये उस जन्म की इस जन्म में प्रतिक्रिया है । जैसी क्रिया होगी, प्रतिक्रिया को वैसा ही होना होगा । क्रिया किस तरह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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