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________________ ध्यान : साधना और सिद्धि आज तुम्हारी हर कामना पूर्ण होगी, मांगो, जो चाहते हो। तो हम भी यही सब पत्नी, पुत्र, पद, प्रतिष्ठा, ऐश्वर्य, धनसंपत्ति ही माँगेंगे । मुक्ति कोई नहीं चाहता । मुक्त होने की अभीप्सा नहीं है । वह परम पिपासा ही नहीं है कि मुक्ति मिले। इसीलिए कहता हूँ कि मनुष्य की केवल मृत्यु होती है और जीवन जन्म-मरण का सातत्य बनकर रह जाता है । जन्म मिलता है और मृत्यु हो जाती है; रूपान्तरण की घटना ही नहीं घटती । पाने की आकांक्षा पूर्ण नहीं होती और पा - पाकर आज तक कोई प्राप्त नहीं कर पाया है । १०८ अर्थियाँ गुजरती रहीं, पर हम कोई अर्थ नहीं पा सके । जीवन के अंतिम निष्कर्ष और सार को जो न समझ सके, वह कैसे मुक्ति की डगर पर बढ़ेंगे ! उनका निर्वाण नहीं, मृत्यु ही होगी; और जो जग जाता है, अपने जीवन में मृत्य का पाठ पढ़ लेता है, मृत्यु का बोध पा लेता है, उसके जीवन में मुक्ति का कमल, निर्वाण का प्रकाश अनायास प्रगट होता है । 1 कहते हैं : भगवान बुद्ध अशोक वृक्ष की छाया में बैठे हुए थे । शिष्य भी आसपास ही थे । अचानक बुद्ध मुस्कुरा उठे । आनन्द ने पूछा, 'बात समझ में नहीं आई । आप यहाँ बैठे हैं, कोई घटना भी नहीं है, कहीं कोई आना-जाना भी नहीं है, और आप बैठे-बैठे अचानक मुस्कुरा दिए ।' बुद्ध फिर मुस्कुराते हुए बोले, 'तुम्हें लगता है कोई आया नहीं, कोई गया नहीं, लेकिन मैं स्पष्ट देख रहा हूँ कि इस बीच कितनी बड़ी घटना घट रही है । तुम देखो दूर जो नदी बह रही है वहाँ एक सार्थवाह, एक व्यापारी स्नान कर रहा है । बैलगाड़ी उसके पास है जो सामान से भरी हुई है । वह व्यापारी स्नान करते हुए मन में कल्पनाएँ संजो रहा है- यहाँ से बड़े शहर जा रहा हूँ, वहाँ इस माल को बेचने से चौगुना लाभ होगा। उससे मैं और माल खरीदूँगा, और लाभ होगा । इस तरह लाभ होता चला जाएगा । मैं धनवान हो जाऊँगा, फिर मैं सेनापति हो जाऊँगा, सेनापति से राजा बन जाऊँगा, अपने लिए राजमहल भी बना लूँगा, सात राजकुमारियों से विवाह करूँगा । मेरा संसार सुखमय हो जाएगा। वह नदी में स्नान कर रहा है, लेकिन मन कहीं और बह रहा है, मन में इन्द्रधनुष रचे जा रहे हैं । कल्पनाओं के जाल बुने जा रहे हैं । ' बुद्ध कहते हैं, 'वह स्वप्न तो वर्षों के देख रहा है और मेरे मुस्कुरा उठने का कारण है कि वह अगले कुछ दिन भी देख पाएगा इसमें संदेह है। आनन्द, तुम जाओ और उस व्यापारी को बोध दे आओ । शायद उस आत्मा का भला हो जाए । आनन्द जाते हैं और सारी वस्तुस्थिति से परिचित कराते हैं । वह युवक अपनी चेतना खो देता है और बेहोश हो जाता है । सारे इंद्रधनुषी सपने कहाँ खो गए, पता भी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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