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________________ १०७ मुक्ति हो, मृत्यु नहीं कुछ और हैं । बात करेंगे मुक्ति की, चाहत होगी संसार की। पानी थी मंजिल मुक्ति की, पर माया से कब ट सके ! आकाश सुहाया आँखों में, पर पिंजरे से कब छूट सके !! जब तक माया की माथापच्ची से मुक्त न हों, तब तक बात बनेगी भी कैसे ! ऐसा ही हुआ। महावीर के पास एक ब्राह्मण पहुँचा और कहा ‘भगवन्, आप इतना उपदेश देते हैं, मुक्ति के लिए इतना आह्वान करते हैं, इतने लोग मुक्ति की साधना भी करते हैं और ये मुक्त होकर जहाँ पहुँचेंगे, वहाँ बहुत भीड़ नहीं हो जाएगी ? जो कुछ संसार में हो रहा है वहाँ भी नहीं होने लगेगा ?' महावीर ने मुस्कुराते हुए कहा, 'ब्राह्मण, मैं तुम्हें उत्तर दूँ इसके पहले तुम भी मेरा एक काम करो।' ब्राह्मण प्रसन्न हुआ कि भगवान ने स्वयं उसे कार्य सौंपा है। उसने कहा, 'अति आनन्द से आपकी सेवा करूँगा।' तो ऐसा करो आज तुम गाँव में जाओ और हर घर में जाकर बताओ कि मैंने संकल्प लिया है कि कल जिसकी जो मनोकामना होगी, उसे पूर्ण करूँगा। तुम जाओ और उसकी एक सूची बना लाओ कि किसको क्या चाहिए।' ब्राह्मण हर्ष से भरा हुआ गाँव गया और दिन भर घूम-घूमकर हर व्यक्ति से मिलकर एक सूची तैयार कर ली । संध्याकाल में वापस आकर भगवान से कहा, 'भंते, मैंने आपकी आज्ञा का पालन किया है और यह रही, वह सूची लीजिए।' 'मैं सूची का क्या करूँगा । बस तू मुझे यह जता दे कि किसे किस चीज की जरूरत है, किन वस्तुओं की आवश्यकता है।' प्रभु ने कहा । पूरी सूची सुनाई गई । भगवान ने कहा, 'तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया?' ब्राह्मण ने कहा, 'कैसे' ? 'मैंने तुम्हारे प्रश्न का उत्तर देने के लिए ही तो यह श्रम करवाया है।' 'मैं समझा नहीं' -ब्राह्मण ने कहा । 'तुमने पूछा था अगर सभी लोग मुक्त हो गए तो?' वत्स, ध्यान रखो, लोग मुक्ति की बात करते हैं, लेकिन कोई मुक्त होना नहीं चाहता । तुमने सूची पढ़ी है न, इसमें किसी को बेटा चाहिए, कोई अपना व्यवसाय चलाना चाहता है, किसी की पत्नी नाराज रहती है वह उसे खुश करना चाहता है, कोई धन-संपत्ति चाहता है, कोई समाज में प्रतिष्ठा चाहता है, बताओ कोई मुक्ति भी चाहता है?' यही हमारा चरित्र है। भगवान स्वयं हमारे सम्मुख आ जाएँ और कहें कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003863
Book TitleDhyan Sadhna aur Siddhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2003
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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