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जीवन जिएँ अन्तर्हृदय से
मेरे प्रिय आत्मन्,
मनुष्य के जीवन-विज्ञान के दो महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। एक है मनोविज्ञान दूसरा है हृदय-विज्ञान | मनोविज्ञान पश्चिमी चिंतन की देन है और हृदय - विज्ञान भारतीय मनीषा का अवदान है। जीवन के बाहरी व ऊपरी पहलुओं को समझने के लिए मनोविज्ञान है, किंतु जीवन को उसकी आंतरिक गहराइयों के साथ जीने का विज्ञान हृदय-विज्ञान है ! धरती के समक्ष आज केवल मनोविज्ञान ही उभरकर आ रहा है, किंतु जब तक मनुष्य हृदयवान नहीं होगा, तब तक उसकी बौद्धिक क्षमता और मनस्विता उसे जीवन की कोमलता, सरसता और जीवंतता नहीं दे पाएगी ।
आत्मवान होने के लिए हृदयवान होना आवश्यक है और हृदयवान होने के लिए एक मनस्वी और चिंतक का जन्म लेना जरूरी है। मनीषी और चिंतक होना पहला चरण है, हृदयवान होना दूसरा चरण, आत्मवान् होना तीसरा चरण । मुक्त व्यक्तित्व के ये तीन चरण हैं । पश्चिम ने मनुष्य के शरीर की आंतरिक चिकित्सा के लिए मनोविज्ञान के कई महत्वपूर्ण घटक बताए। अगर समझना हो मनुष्य के चेतन मन को, उसके अवचेतन जगत को, मन के अचेतन धरातल को तो मनोविज्ञान के द्वार पर दस्तक दो । और अगर जीवन को उसकी गहराइयों तक जाकर जीना हो तो बिना हृदय-विज्ञान को आत्मसात् किए व्यक्ति सही रूप में मौलिक व्यक्तित्व का स्वामी नहीं बन सकता ।
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