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ध्यान और विश्व का भविष्य
कौन फिराये हाथ सुमिरनी, जीना हमें भजन लगता है, मरना हमें हवन लगता है। याद तुम्हारी मन में हो तो, मग हर वृंदावन लगता है।
अपने में मधुवन लगता है। ऐसा साक्षित्व घटा कि अब तो सारा परायापन चला गया। सारा संसार तुम्हारा हो गया । साधक विश्व-मित्र हो गया । सबका कल्याण मित्र हो गया । तुम अपनी साधना को क्रिया-भाव से जितना मुक्त करोगे, अपने आप में होने में जितने लयलीन बनोगे, तुम्हारा वास्तविक सौरभ उतना ही उद्घाटित होगा। कमल कीचड़ से ऊपर उठेगा। तुम मुक्त बनोगे, आकाश की तरह उन्मुक्त ! साधुवाद लाओत्से को जो स्वयं वेई-वू-वेई से गुजरे और साधुवाद होगा तुम्हारे लिए जब तुम इस दिव्य मार्ग से गुजरोगे। धन्यघड़ी, धन्यभाग, जब हकीकत में ऐसा होगा।
नमस्कार ।
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