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________________ अतिथि आए तो उससे ऐसा व्यवहार किया जाना चाहिए कि वह संतुष्ट होकर लौटे। अतिथि का असंतुष्ट होकर जाना हमारे हित का सौदा नहीं है। लोग अतिथि को क्यों खिलाते हैं, चाय-पानी क्यों पूछते हैं? अतिथि को मिठाई खिलाई जाती है। पति ने पत्नी से पूछा, तुम ये मिठाई के डिब्बे भर कर रखती हो, मुझे तो नहीं खिलाती। पत्नी ने कहा, ये आपके लिए नहीं, घर आने वाले अतिथियों के लिए हैं। आपकी इज़्ज़त बनी रहे, इसके लिए मैं ये मिठाई रखती हूँ। अतिथि संतुष्ट होकर जाना चाहिए। इसी मैं आपका और घर-परिवार का कल्याण है। अतिथि के लिए भी नियम-कायदे हैं। ऐसा नहीं है कि आप कहीं अतिथि बनकर गए, तो वहाँ अतिथि ही बन कर रहें । उस घर के लिए अपनी आहुतियाँ देने की कोशिश करें। ऐसी आहुतियाँ भी मत दे बैठना कि घर में रहने वालों के बीच दीवारें खड़ी कर आओ। अतिथि तो शकुनि भी बना था। हालाँकि वह धृतराष्ट्र का साला था, लेकिन साले ने पूरा घर बरबाद कर डाला । यह देश और देश की माटी एक दफा भाभी की बेइज्जती के लिए दुर्योधन को तो माफ कर सकती है, लेकिन घर में आकर सत्यानाश करने वाले साले को कभी माफ नहीं कर सकती। शकुनि यानी सत्यानाश का दूसरा नाम। ऐसे मेहमान से तो भगवान बचाए। मेहमान तो मेह जैसा हो, आए तो घर-आँगन को तृप्त कर जाए। जिसके आने से गीत बन जाए कि आने से जिसके आए बहार, जाने से जिसके जाए बहार।' मेहमान तो जवाई भी होता है। ससुराल जाओ, तो वहाँ केवल जवाई बनकर न बैठ जाना। जिस पत्नी को अपना माना है, उसके माता-पिता को अपने माता-पिता जैसा समझना। हमारे यहाँ कहा जाता है कि बेटी देकर बेटा लिया जाता है। लेकिन वास्तव में ऐसा होता दिखता नहीं है। बेटी तो जाती है, पर बेटा नहीं मिलता। इस व्यवस्था में परिवर्तन होना चाहिए। जवाई-पद तो एक दिन का है। किसी की बेटी आपकी बहू बन जाती है, तो आपकी बेटी भी तो किसी की बहू बनेगी। जवाई बेटा बन जाए, तो सारी समस्या ही हल हो जाए। फिर कोई यह समझेगा ही नहीं कि एक बेटी और हो गई। उन्हें लगेगा, हमने एक बेटी को जन्म देकर किसी एक बेटे को गोद पा लिया है। तुम्हें पा के हमने जहां पा लिया है, जमीं तो जमीं, आसमां पा लिया है। तब बेटी के जन्म पर और जंवाई के घर आने पर यही लगेगा कि तुम्हें क्या पा लिया, अपने घर-आंगन में ही सारा जहां पा लिया, सारा आसमां पा लिया। संसार वो नहीं है, जो धरती पर बना है; संसार वो है जो हमारी बाँहों में आ जाता है। 70 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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