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जितनी खशी मिली है, उतनी दो बच्चों की माँ बनकर भी नहीं मिल पाई।' इसलिए मैंने कहा, पत्नी से बड़ा पति का कोई हितैषी नहीं होता।
दुनिया में हितैषी दो प्रकार के होते हैं - पहले माँ-बाप और दूसरी पत्नी। पुत्र या पुत्री के हित की जितनी कामना माँ-बाप करते हैं, उतनी कोई नहीं करता। गुरु लोग ज्ञान की बात करते हैं। शिष्यों का हित चाहते हैं, लेकिन उनके हित चाहने में मोह नहीं होता। बुराई छोड़ें तो ठीक, न छोड़े तो भी ठीक। लेकिन माँ-बाप और पत्नी ऐसे होते हैं जो चाहते हैं कि उनका पुत्र या पति हर हालत में बुराई छोड़ दे। पत्नी हितैषी होती है, इसलिए पति को उसकी बात की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
यही हआ। तीन दिन बाद यमराज लौटे और यमी से उन्हें सारी बात का पता चला, तो पत्नी की बात को अपने हित में समझते हुए वे तत्काल द्वार तक आए और नचिकेता का स्वागत-सत्कार किया। यमी ने यमराज से कहा कि देखें, अतिथि के भोजन व विश्राम की व्यवस्था करावें। पता लगाएँ कि अतिथि किस प्रयोजन से आए हैं। हमारे द्वार पर कोई आता है और हमारे कुछ करने से प्रसन्न होता है, तो वह कार्य हमें प्रसन्नतापूर्वक करना चाहिए।
उस महिला ने कहा, मेरे पति का गुटखा छुड़वा दीजिए। मैंने पति से कहा कि तुम्हारे एक काम से तुम्हारी पत्नी को जीवनभर का सुख मिल सकता है, तो इससे बडी
और क्या बात होगी। उसने मान लिया। इसी तरह यमी की बात मानकर यमराज हाथ में ताँबे का कलश लिये द्वार तक पहुँचे। कलश में गंगाजल भरा था। उन्होंने विनम्रतापूर्वक नचिकेता के चरण धोए।अतिथि के सामने अकड़ दिखाने से उसका सत्कार नहीं किया जा सकता। गंगाजल से किया गया अभिषेक हमारी विनम्रता का ही प्रतीक है । कभी यह मत सोचो कि जो हमारे घर आया है, वह छोटा है या बड़ा। घर आया अतिथि भगवान का रूप है और भगवान कभी छोटे या बड़े नहीं होते। भगवान हमेशा बड़े ही होते हैं। भगवान सीधे कभी दैवीय रूप में नहीं आते। वे एक साधारण मानव का रूप लेकर आते हैं। चंदनबाला के सामने भगवान महावीर सामान्य रूप में पहुँचे। मरुदेवी माता के सामने ऋषभदेव और सुदामा के सामने कृष्ण का पहुँचना भी कुछ ऐसा ही था। शबरी के सामने भगवान राम एक वनवासी के रूप में आए थे। राम न जाने कितने लोगों से मिले, लेकिन शबरी रे उनमें भगवान को देख ही लिया। यह चंदनबाला ही थी जिसने महावीर को पहचाना और उनसे आग्रह करने लगी कि प्रभु, मेरी भव-भव की बेड़ियाँ काट दीजिए। भगवान कहाँ होते हैं ? देखने और समझने वाले की नजरों में । अन्यथा भगवान आँखों के आगे से निकल जाएँ, हम उन्हें नहीं पहचान पाएँगे।
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