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________________ रहे थे। यमराज किसी प्राणी को धरती से उसकी इच्छा के विपरीत उठाकर लाते हैं, लेकिन यहाँ यमी की बात को उन्होंने ध्यानपूर्वक सुना। यमराज भले ही काले-कलूटे हैं, भैंसे की सवारी करते हैं, उन्हें देखकर भले ही कोई डर जाए, भले ही यमराज को दुनिया अच्छी नज़रों से न देखे, लेकिन उनकी पत्नी उन्हें सम्मान से सम्बोधित करती है। यमी ने उनसे कहा कि घर आए अतिथि का सम्मान-सहित सत्कार करें। अतिथि का सत्कार करने के पीछे पूरा एक दर्शन है। अतिथि कौन, जिसके आने की तिथि न हो।अतिथि वह होता है जिसे हम जानते नहीं, पहचानते नहीं, लेकिन उसने हमारे यहाँ आकर भोजन करने की कृपा की। बिना सूचना जो हमारे यहाँ पहुँचता है, उसे हम कहते हैं अतिथि। हम खाना खाने बैठे और कोई हमारे घर आ गया। हमने अपनी थाली में से दो रोटी उसे भी परोस दीं, तो यह कहलाएगा अतिथि-सत्कार। कोई हमारे द्वार पर अतिथि बनकर आता है, तो वह भगवान के बराबर होता है। हम ऐसा समझेंगे, तो भगवान के प्रति हमसे कोई भूल न होगी। लोग एक भूल कर जाते हैं । वे बाहर से आए अतिथि का तो सत्कार कर लेते हैं, लेकिन कई बार घर के सदस्यों को भूल जाते हैं। ___ ऐसे किस्से सुने गए हैं। किसी घर में शादी-समारोह होता है तो हम लोग दुनियाभर को तो न्यौता दे आते हैं लेकिन कई बार घर के सदस्यों की तरफ़ हमारी नज़र नहीं पड़ती। अपने भाई तक को भूल जाते हैं। समारोह के दौरान पता चलता है कि अमुक भाई और उसका परिवार तो आया ही नहीं। पूछने पर पता चलता है कि उन्हें कहा ही नहीं गया। बोले, तुम तो भाई हो, तुम्हें कैसी पत्रिका? बस, यहीं चूक हो जाती है। घर वालों को भूल जाते हैं। जागरूकतापूर्वक जीने वाला व्यक्ति इस बात का बोध और विवेक रखे कि वो जिस तरह किसी अतिथि के सत्कार में कोई कमी नहीं रखता, उसी तरह परिवार के सदस्यों को भी न भूले। यह परिवार की खुशहाली का राज है । एक-दूसरे से तालमेल बिठाने का तरीका यही है कि हम घरवालों की उपेक्षा न करें। उनको भी समय दें, सम्मान दें। उनकी सुख-सुविधा का ख़याल रखें। प्रेम ऐसे ही बढ़ता है। घर में सुखशांति की ऐसे ही बढ़ोतरी होती है। सास फल खा रही है। ज़रूर खाए, लेकिन दो पीस अपनी बहू को भी दे, हालाँकि फल सुधार कर आपकी बहू ही लाई है। वह अपने आप खा सकती है, लेकिन सास के हाथ से दिए गए फल का स्वाद कुछ अलग ही होगा। उसका खुद खाना अलग बात है और सास का खिलाना अलग बात है। अपने हाथ से खाए तो यह उसका स्वेच्छा से खाना हुआ लेकिन सास ने खिलाया, तो यह बहू के प्रति उनके प्यार का इज़हार हुआ। 60 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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