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________________ खड़ा है। यह सब कुछ दान के प्रति उनकी अगाध आस्था का ही परिणाम है कि सदियाँ बीत गईं, कर्ण को आज भी लोग सम्मान से याद करते हैं। जन्म के साथ ही जो अछूत और उपेक्षित रहा, वह अपनी दानशीलता के कारण महान् बन गया । कोई भी कर्म यदि पूर्णता से किया जाए, तो वह कर्म ही इंसान को यशस्वी और अमर बना देता है । इसलिए जीवन में दान की प्रवृत्ति होनी चाहिए। दान देने का संस्कार होना चाहिए। एक गरीब बच्चे के द्वारा अपने द्वार पर आए किसी तपस्वी संत को उल्लास-भाव से खीर दिए जाने से वह इतने बड़े पुण्य का भागी हुआ कि वही बच्चा आगे जाकर संसार का सबसे धनाढ्य सेठ शालिभद्र बना। ज़रूरी नहीं है कि देने के नाम पर हम लाखों रुपयों का दान ही करें। अरे, चौराहे से गुजरते किसी नेत्रहीन को रास्ता पार करवा देना, किन्हीं दो बच्चों को पढ़ा देना, कार पार्किंग करने जाओ तो वहाँ किसी बुजुर्ग को गाड़ी खड़ा करने के लिए अपनी जगह दे देना - ये सब भी दान ही हैं । दान के हजार रूप हो सकते हैं। किसी को समय देना भी दान ही है। भोजन कराना, प्यासे को पानी पिलाना, ग़रीब बच्चे की फ़ीस जमा कराना दान के ही अलग-अलग रूप हैं । अरे, जब भोजन बनाओ तो एक मुट्ठी आटा अतिरिक्त रूप से भिगो लिया करो । हो सकता है, उसकी दो रोटियाँ किसी भूखे के काम आ जाएँ। अरे, और कोई न मिले तो किसी गाय या जीव-जंतु को ही खिला दो । कुल मिलाकर देने का संस्कार होना चाहिए। हम सबके काम आएँ । चौबीस घंटे में कोई भी पल हो, ऐसा होना चाहिए कि कुछ देने का सौभाग्य मिले। जिस दिन हाथ से कुछ दिया न जा सके, तो समझना, दिन तो बीता लेकिन उसकी कोई सार्थकता नहीं हुई । उद्दालक ने दान दिया लेकिन उन्होंने दान में ऐसी गायें दीं जो किसी काम की न थीं। बीमार और अशक्त, दूध न देने वाली गायें । उद्दालक ब्राह्मण थे, इसलिए उनके पास धन के नाम पर गाएँ ही थीं। ऐसी गायें जो बूढ़ी, अनुपयोगी थीं, उद्दालक ने दान कीं। इसे देख नचिकेता शंकित हो उठे थे । धर्म के दो चरण हैं - यज्ञ और दूसरा दान । यज्ञ किया, अच्छी बात है, श्रेष्ठ काम किया; लेकिन दान भी श्रेष्ठ वस्तु का ही देना होगा । यज्ञ तो किया बहुत महान्, लेकिन यज्ञ के बाद दान किया मरियल । नचिकेता की इस यज्ञ घटना को कोई मामूली न समझें। जो लोग भी दान करते हैं, उन्हें इस घटना से सीख लेना चाहिए कि दान करो, तो कैसा करो। दान यदि हल्का होगा, तो किया गया महान् यज्ञ भी हल्का हो गया । नचिकेता चिंतन करने लगा कि इस तरह के दान से तो उसके पिता स्वर्ग के सुखों से वंचित रह जाएँगे। यज्ञ के उद्देश्य की प्राप्ति न होगी। सच्ची संतान वही होती है जो सोचे कि उसके पिता जो भी कार्य करें, उससे उनकी कीर्ति बढ़े, उन्हें स्वर्ग का सुख मिले । नचिकेता विचार करने लगा, क्या किया जाए, पिताजी को कैसे समझाया जाए ? पुत्र अपने पिता को सीख देता अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन उसे अपने पिता की कीर्ति की Jain Education International 39 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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