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हम देने की प्रवृत्ति रखें। वाजश्रवा के पुत्र उद्दालक ने भी यही किया। यज्ञ पूर्ण हुआ, तो अपना संपूर्ण धन दान में दे दिया। ऋषियों के पास सबसे अधिक कीमती चीज़ गोधन होता है। उद्दालक के पास बहुत-सी गायें थीं। वे उन गायों को ब्राह्मणों को देने लगे। यह देख, उनके पुत्र नचिकेता नृत्य करने लगे। लोग हैरान रह गए। नचिकेता एक ऐसा पात्र हुआ है जिसने मृत्यु तक को नचा दिया। नचिकेता का नाचना एक रहस्य को उजागर करता है।
नृत्य तो हर किसी को आना चाहिए। जिस धर्म में नृत्य का लालित्य न हो, वह नीरस हो जाता है। ध्यान की बजाय भक्ति को इसीलिए आसान माना गया है क्योंकि भक्ति में नृत्य खुद ही छिपा हुआ है। नृत्य से मन की बोझिलता दूर होती है। सुस्ती और आलस्य भाग जाता है। अंतर्मन में सहज ही एकलयता बन जाती है। मैंने नृत्य का प्रयोग करके देखा है। 'मैं' का भाव विलीन ही हो जाता है। आप भी अगर नृत्य करो, तो प्रभु में ऐसे खो जाओ कि न 'मैं' रहे न 'तुम', केवल 'वही' रह जाए। नाचो तो ऐसे नाचो कि मानो मीरा दीवानी हो गई। ऐसे नाचो कि पग घुघरू बाँध मीरा नाचे।
___ कभी ध्यान करने बैठो और मन न लगे, तो पहले पन्द्रह मिनट तक गहरे श्वास प्रश्वास का अभ्यास करें। फिर किसी मंत्र की धुन पर नृत्य करें, इससे एकलयता बन जाएगी और ध्यान भी सध जाएगा, अन्यथा ध्यान कठिन हो जाएगा। सो पहले नृत्य या धुन के ज़रिए ख़ुद को लय में ले आओ। इतने लय में कि सुध-बुध न रहे। शरीर का भी स्मरण न रहे। शरीर थक जाए, तो बैठ जाओ। जिस व्यक्ति का शरीर शांत हो चुका है, उसका चित्त भी शांत होने लगेगा।
धर्म को, भक्ति और भजन को, यज्ञ और अनुष्ठान को सरस बनाना है, तो उसमें ताली, थिरकन या नृत्य को जोड़ दो। जिस तरफ आपने कदम बढ़ाए, वह चीज़ आनन्द दे रही है, तब तो आपका उसका तादात्म्य बैठ जाएगा; अन्यथा सब कुछ नीरस हो जाएगा। जीवन आनन्द के लिए है।
नचिकेता का नाचना एक खास संकेत दे रहा था। नचिकेता कोई मूर्ख नहीं था, कि एक तरफ़ तो पिता यज्ञ पूरा कर दान-दक्षिणा दे रहे हों, और दूसरी तरफ़ वह सबके बीच नाचने लगे। इतिहास में ऐसे अनेक लोग हुए हैं जिनके कारण उनके पिता जाने गए। ध्रुव, प्रहलाद ऐसे ही हुए। नचिकेता का नाम भी इनके साथ लिया जा सकता है। कोई पिता अपने पुत्र के नाम से जाना जाए, तो उस पिता के लिए इससे बड़ी बात और क्या हो सकती है! कोई गुरु अपने शिष्य के कारण
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