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________________ 'महाराज, कोड़े की मार से पीड़ा नहीं हुई?' वृद्ध महात्मा ने कहा, 'कोड़ों की मार देह-बल से नहीं, आत्म-बल से सही जाती है। इस वृद्ध काया में देह-बल नहीं है, लेकिन आत्म-बल इतना है कि इन कोड़ों की मार तो क्या, प्रभु के लिए प्राण भी देने हों तो जान हाज़िर है।' । जिन लोगों में इतना आत्म-बल रहता है, वे जीवन की हर अनुकूलता और प्रतिकूलता, दोनों में सहज रहने में सफल होते हैं। वे जीवन का सच्चा आनन्द लेते हैं। व्यक्ति की सहजता ही आनन्दमय जीवन जीने का रास्ता है। याद रखिएगा, सहजता ही जीवन के समस्त सुखों की आधारशिला है। सहजता खुद ही अपने-आप में एक साधना है। संसार में ऐसा कोई वर्ष नहीं होता जिसमें ऋतुओं में बदलाव न आता हो और दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है, जिसे अपने जीवन में विपरीत हालात का सामना करना न पड़ा हो। किसी ने गाली दी, पर इसके बावजूद हमने उसे पीने के लिए शरबत का ऑफर किया, तो समझ लो आप सहजता को जी रहे हैं। गाली के बदले में गाली देना सुअर-कुत्तों की जमात में शामिल होने के बराबर है। क्रोध आया, तो इसका मतलब यही है कि सहजता खण्डित हो गई। तारीफ़ सुनकर अच्छा लगा, तो समझ लीजिएगा हमारी सहजता बाधित हो गई और मन अहंकारग्रस्त हो गया। कबीर ने कहा है, 'निंदक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय।' एक आध निंदक पास रखें, ताकि खुद की शांति की कसौटी हो सके। बड़ा मज़ा आता है सुकरात जैसा जीवन जीने में। उनकी पत्नी तेज़ स्वभाव की थी। लोग पूछते, पत्नी इतने तेज स्वभाव की और आप इतने शांत; आपको असहज नहीं लगता? सुकरात हँसते और कहते, भाई, ईश्वर का शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझे ऐसी पत्नी दी। लोग फिर सवाल करते, इसका मतलब? सुकरात उन्हें बताते कि लोग शांति और समता की साधना करने गुफाओं में जाते हैं। मुझे किसी गुफा में जाकर तपस्या करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि मेरी पत्नी ही मेरी गुफा है, मेरी शांति और समता की वही कसौटी है। वह रोज-ब-रोज मेरी कसौटी कस लेती है और मैं रोज उसकी ग़ालियाँ सुनकर अपना मूल्यांकन करता रहता हूँ। शुरू में उसकी ग़ालियों का मुझ पर शत-प्रतिशत प्रभाव पड़ता था। फिर नब्बे प्रतिशत प्रभाव पड़ने लगा। फिर अस्सी, साठ और पचास प्रतिशत हुआ। घटते-घटते अब स्थिति यह हो गई है कि असर ही नहीं होता। अब तो गाली और गीत बराबर। मान-अपमान बराबर। एक बाल्टी पौंछे का पानी हो या एक मटका गंगाजल, अब दोनों में सहजता बनी रहती है। यह सहजता ही साधना है। मैं सहजता को जीता हूँ, इसीलिए सहज हूँ। ज्ञानी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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