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________________ एक महान सम्राट हुए हैं। उनका नाम था सम्राट इब्राहिम। सम्राट के राजमहल में अचानक एक फ़क़ीर पहुँचता है और वहाँ पहुँच कर महल के बीचोंबीच चारपाई लगाकर सो जाता है। राजमहल के कर्मचारी उसे समझाते हैं, सम्राट का भय दिखाते हैं। उसे अलग से बने सरायखाने में जाने के लिए कहते हैं। फ़क़ीर नहीं मानता, वह कहता है, यह महल भी सरायखाना है, मैं तो यहीं ठहरूँगा। सम्राट ये सारा नज़ारा देख रहा होता है। फ़क़ीर की बात सुनकर वह हैरान होता है। फ़क़ीर उसके अच्छे-भले महल को सरायखाना कह रहा है। यह पागल हो गया लगता है। सम्राट फ़क़ीर के पास पहुँचता है और उससे कहता है, ये कर्मचारी सही कह रहे हैं, आपके विश्राम के लिए सराय बनी है, आप वहाँ जाएँ। फ़क़ीर हँसते हुए कहता है, 'यह सराय ही तो है।' सम्राट उसे फिर समझाते हैं, 'यह राजमहल है, सरायखाना नहीं।' फ़क़ीर सम्राट से पूछता है, 'राजन्, अगर आप कहते हैं तो मान लेता हूँ, पर ज़रा मुझे इतना-सा बताइए कि आपके पिता कहाँ रहते थे?' सम्राट कहता है, 'इसी महल में।' फ़क़ीर ने पूछा, 'उनके पिताजी कहाँ रहते थे?' फिर जवाब वही होता है, 'इसी महल में।' फ़क़ीर का अगला सवाल था, 'तुम्हारे पड़दादा कहाँ रहते थे?' इसका जवाब भी यही होता है, 'इसी महल में।' फ़क़ीर पूछता है, 'अब वे लोग कहाँ चले गए?' सम्राट कहता है, 'ऊपर वाले के घर चले गए।' फ़क़ीर हँसा, कहने लगा, 'इसका मतलब तू भी चला जाएगा।' यह सुनते ही सम्राट चौंका। फ़क़ीर कहने लगा, 'सम्राट, तुम कहते हो, यह राजमहल है, पर हक़ीक़त यह है कि ये सरायखाना ही है। इतने मुसाफ़िर यहाँ आए और चले गए। तुम भी चले जाओगे। तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ भी एक-एक करके चली जाएँगी। जहाँ इतने मुसाफ़िर आकर चले जाएँ, उसे सरायखाना न कहूँ तो और क्या कहूँ?' कहते हैं, जीवन में कोई घटना सही तरीके से घट जाए, तो इंसान को वर्षों की नींद से, वर्षों की मूर्छा से जगा दिया करती है। ऐसा ही हुआ। सम्राट इब्राहिम की आत्मा को बोध जगा। वह उसी समय फ़क़ीर बन गया। मूर्छा टूटनी कठिन ज़रूर है, लेकिन कोई एक घटना भी मूर्छा को तोड़ सकती है। गुरु के चरणों में तो अनेक लोग पहुँचते हैं, लेकिन वे फिर भी सच्चे अर्थों में उनके चरणों तक नहीं पहुँच पाते। इसीलिए कहा गया, पात्रता आवश्यक है। पात्रता पहली अनिवार्यता है। भीतर अगर पात्रता नहीं होगी, तो ईश्वर भी हमारी दहलीज़ पर आकर खड़ा हो जाए तो हम उसे नहीं पहचान पाएँगे। पात्रता आ गई तो फूलों की खिलावट में 22 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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