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चोरी करने की सोचेगा, तो कभी वासना के दलदल में उतरने के बारे में विचार करेगा। व्यस्त रहेगा, तो बेकार के काम नहीं करेगा। यदि तुम दुःखों से मुक्त रहना चाहते हो, तो अपने-आप को हमेशा व्यस्त रहो।
एकांत सुखदायी है तो दुखदायी भी। व्यक्ति के भीतर निरंतर भावनाओं का उद्वेग उठता रहता है। इसलिए बुद्धि रूपी सारथी की रूरत होती है। कठोपनिषद जैसा शास्त्र पढ़ें, तो चिंतन-मनन होने लगता है। ऐसा ज्ञान प्राप्त करने की भूख भीतर जग जाए, तो हमारा सारथी भी परिपक्व होता रहेगा। मन तब तक ही हमारे लिए ठीक है, जब तक उस पर हमारा नियंत्रण रहे। मन जिसे अच्छा कहे, उस काम को करें और मन जिसे गलत बताए, उसे छोड़े दें लेकिन मन पर अपना नियंत्रण रूरी है। संयमित मन ही जीवन का संन्यास है । मन आपसे अच्छा काम भी करवा सकता है और बुरा काम भी। मन में बंधन और मोक्ष - दोनों की ताक़त है।
चौथा चरण है - संकल्प। जीवन में मज़बूत संकल्प करने वालों को ही श्रम करने की प्रेरणा मिलती है। संकल्प मज़बूत है, तो समझिए आदमी मज़बूत है। जिसके संकल्प कमज़ोर हैं, तो वह आदमी भीतर से भी कमज़ोर होगा। परमात्मा को ढूँढ़ने, उनसे बात करने से पहले अपने संकल्पों को मज़बूत करो। हर नए साल के पहले दिन हर कोई संकल्प तो कर लेता है लेकिन उनमें से कोई-कोई ही निकलता है, जो अपने संकल्पों पर खरा उतर कर दिखाता है। ऐसे लोगों का संकल्प करने का कोई अर्थ नहीं है। यह मन की कमज़ोरी है । मन किसी भी मनुष्य के लिए ऊर्जा का काम करता है । मन मज़बूत है, तो संकल्प भी मज़बूत होगा। मज़बूती का मतलब कठोरता नहीं होना चाहिए। फूल की तरह कोमलता भी जीवन में होनी चाहिए। जहाँ जैसी ज़रूरत हो, वहाँ वैसी कोमलता और कठोरता का प्रदर्शन हो जाना चाहिए। आदमी का मनोबल वज्र की तरह मज़बूत होना चाहिए। आत्म-विश्वास मज़बूत होना चाहिए। आदमी को संकल्प तब ही लेना चाहिए, जब उसके मन में उन संकल्पों को पूरा करने की हिम्मत हो। या तो संकल्प करो मत और संकल्प कर लो, तो उसे मरकर भी पूरा करो। किसी की रोटी तब ही खानी चाहिए, जब हम बदले में उसे कुछ देने की व्यवस्था रखते हों। किसी के यहाँ भोजन करके आओ, तो इतना ख्याल रखना कि तुम पर उसके अन्न का ऋण न चढ़े। किसी का नमक खाओ, तो उसे चुकाने का हौसला रखना। आप किसी से लेते ही रहोगे, तो देने वाला तो दे-दे कर तिर जाएगा लेकिन आप ले-लेकर कहाँ जाएँगे? संत पहले जंगलों में रहते थे, कंदमूल खाकर काम चलाते थे। अब शहरों में रहने वाले संत गृहस्थी के व्यंजनों का स्वाद लेने चले जाते हैं। खिलाने वाला तो आपको खिलाकर पुण्य कमा लेगा, लेकिन आप उस ऋण को कहाँ उतारेंगे?
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