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________________ घायलावस्था में तड़पता देखते हैं, तो उसे अस्पताल ले जाते हैं, उसका इलाज कराने का प्रयास करते हैं। यह क्या है ? इसी को ही तो भावना कहते हैं। दुनिया में हर किसी को प्रेम करना आना ही चाहिए। वे लोग दुराग्रह बुद्धि के हुआ करते हैं, जो प्रेम का विरोध करते हैं। लोगों ने प्रेम का केवल नकारात्मक अर्थ निकाल लिया है। प्रेम तो एक महान् धर्म है, प्रार्थना है, सद्गुण है। व्रत, तपस्या, सब में प्रेम समाया है। लेकिन मनुष्य प्रेम को वासना के द्वार पर लाकर छोड़ देता है और तब प्रेम उसके लिए घातक बन जाया करता है। प्रेम लेना नहीं देना जानता है । प्रेम का नाम है – कुर्बानी, फिर चाहे वह ईश्वर के प्रति हो या इंसान के प्रति । प्रेम करने वाला यह नहीं देख पाता कि प्रतिफल में क्या मिलेगा? वह तो जिससे प्रेम करता है, उस पर अपना सब-कुछ लुटाने को तत्पर हो जाया करता है। एक व्यक्ति संत के पास पहुँचा और उनसे कहने लगा, 'मैं प्रभु को प्राप्त करना चाहता हूँ, मुझे क्या करना चाहिए?' संत ने कहा, 'तुम प्रेम करो, अपने-आप प्रभु के पास पहुँच जाओगे।' उसने फिर पूछा, 'किसे प्रेम करूँ?' संत ने कहा, 'सबसे प्रेम करो लेकिन याद रखना, जब तक अपने-आप से प्रेम नहीं करोगे, दूसरों से किया गया प्रेम निरर्थक होगा।' खुद से प्रेम करो और फिर दूसरों से भी प्रेम करना सीख लो । प्रभु से प्रेम करना सीख लिया, तो उसे पाने का रास्ता भी सूझ जाएगा। लेकिन इतना ध्यान रखना, प्रेम, प्रेम ही रहे, वासना न बन जाए; अन्यथा तुम्हारे लिए मुक्ति का मार्ग नहीं खुल पाएगा। प्रेम करने के लिए भावना की ज़रूरत होती है, इसलिए भावना पर जोर दिया गया। मनुष्य भावों के आधार पर पार लग जाया करता है - जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। ___हमारी भावना जैसी होगी, उसी तरह पार उतरने के रास्ते मिल पाएँगे। मंदिर में जाएँ तो वहाँ माँ दुर्गा की प्रतिमा में हमें वहीं दिखाई देगा, जैसी हमारी भावना होगी। हमारे मन में काम या वासना की भावना है तो हमें दुर्गा माँ की प्रतिमा भी किसी नवयुवती की प्रतिमा दिखेगी। हम उसमें भी वे चीजें तलाशने लगेंगे, जो वासना का निमित्त बनती हैं। अपनी पड़ोसिन में भी माँ दुर्गा को देखें, तो उसके प्रति हमारे मन में सम्मान की भावना पैदा होगी। भावना ऐसी ही होती है। जैसे मन में विचार, वैसी भावना। जीवन में हर चीज़ के दो पहलू होते हैं - सद्भाव और दुर्भाव । मन की इंद्रियों को साध लेंगे, तो वे अच्छी राह दिखाएँगी और इंद्रियों ने हमको साध लिया, तो वे हमें गलत रास्तों पर ले जाएँगी। भारत के राष्ट्रपति रहे एपीजे अब्दुल कलाम ने विवाह नहीं किया। वे हमेशा कुछ-न-कुछ नया करते ही रहते हैं। फालतू मन वासना की तरफ मुड़ जाता है। कभी 216 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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