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________________ तक पहँची। उनके मन में घोडे को अपने कब्जे में करने का विचार आया। राजा ने अपने विश्वस्त अनुचर को उस घोड़े को लाने का काम सौंप दिया। अनुचर ने घोड़े की गतिविधियों पर छिप कर नज़र रखी। एक दिन मौका देखकर वह घोड़ा ले उड़ा।घोड़ा वहाँ से कबूतरखाने पहुँचा। चोर ने उसे रुका देखकर घोड़े के ऐड़ लगाई। घोड़ा वहाँ से रवाना होकर मंदिर के आगे जा ठहरा। चोर ने फिर ऐड़ मारी। इस बार घोड़ा संत की कुटिया पर जा पहुँचा। संत ने अपने घोड़े को देखा, तो तत्काल बाहर आए। उन्हें देखकर चोर भाग गया। इसके बाद वह घोड़ा जिनदास जी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। हम अपने मन रूपी घोड़े को इसी तरह प्रशिक्षित कर लें तो हमारी ऐड़ पर वह वहीं जाकर रुकेगा, जहाँ के लिए उसे तैयार किया गया होगा। गुरु के इशारे को जो समझे, वही सच्चा शिष्य। इसी तरह मन जिसके इशारे पर चले, वह मन का मालिक। एक तो वह आदमी होता है जो इशारे से समझ जाता है और दूसरा वह होता है जिसे समझा दिया जाए, तो उसे समझ में आ जाता है; लेकिन तीसरे ऐसे भी होते हैं जो समझाने पर भी नहीं समझ पाते। ऐसे आदमी की इंद्रियों के घोड़े अनियंत्रित हो जाया करते हैं। हमारे विचार भी इसी तरह के होते हैं। हर घोडा तो जिनदास जी का घोड़ा हो नहीं हो सकता, सभी इंद्रियाँ तो महावीर की इंद्रियों जैसी हो नहीं सकतीं, हरेक का मन तो बुद्ध का मन हो नहीं सकता। लेकिन निराश होने की भी आवश्यकता नहीं है। प्रयास जारी रखें, पुनः पुनः मन पर बुद्धि का अंकुश लगाने की कोशिश जारी रखें। जैसे-जैसे हमारी समझ बढ़ेगी, हमारी अंतर्दृष्टि बढ़ती जाएगी। मन पर हमारा नियंत्रण होता चला जाएगा। मन का पहला गुण-धर्म है विचार / दूसरा गुण-धर्म है वासना / दुनिया में इससे कोई नहीं बचा। दुनिया में प्राणी मात्र में वासना समाहित है। विचार से ज्ञान-विज्ञान का जन्म होता है और वासना से संसार का सृजन होता है। याद रखो, अपनी वासना पर नियंत्रण सबसे कठिन काम है। किसी भी व्यक्ति के लिए धन-सम्पत्ति को छोड़ना आसान हो सकता है, लेकिन वासना से मुक्ति आसान नहीं है। जो केवल हवा और पत्तों पर निर्भर रहकर तप करते थे, वे ऋषि पाराशर और विश्वामित्र भी पतित हो गए थे। हमारी तो बिसात ही क्या है? विश्वामित्र की तपस्या को मेनका ने भंग कर दिया था। मन के विकृत रूप, वासना के विकृत रूप ही हमें बार-बार जन्म लेने को मजबूर करते हैं / वासना का अपना महत्त्व है लेकिन उतना ही, जब तक वह सृजन के लिए हो। भोग के लिए वासना के दलदल में उतरने वालों को व्यभिचारी कहा जा सकता है। ऐसे लोग वेश्यागामी हो जाया करते हैं / उलटे काम करने लगते हैं। 214 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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