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फूल खिलते हैं, तो काँटे भी उग आते हैं। अपने सबके जीवन में फूल और काँटे दोनों समान रूप से रहते हैं। हमारी कला इसी में है कि हम शूल को फूल में बदल लें। हमारे काँटे फूल बन जाएँ, हमारे कँटीले विचार सद्विचारों में बदल जाएँ। हो सकता है किसी के प्रति हमारे मन में गलत विचार आ गए हों, हम किसी को पंसद नहीं कर पा रहे हों। हमें इस भावना को बदलना होगा। मेरा रूपान्तरण मैं करूँगा, आपका रूपान्तरण आप करेंगे।
मन में जब भी कुछ गलत करने का विचार आए, तो मन को दूसरी दिशा में ले जाएँ। सोचें, जो कुछ करने जा रहे हैं, क्या उससे किसी का कोई भला होने वाला है ? गलत विचार आदमी को आत्महत्या की सलाह दे सकते हैं। ऐसी स्थिति में हमें अपने आपको समझाना चाहिए। कुछ देर विचार करेंगे, तो हो सकता है कि हम आत्महत्या करने से हट जाएंगे। मनुष्य अपनी ओर से पूरा प्रयास करता है लेकिन मन बार-बार भटक जाता है। मन पर नियंत्रण पाना किसी जीवन-संग्राम से कम नहीं है। जब कोई दोराहे पर होता है, तब उसका मन भी दो दिशाओं में जाने की जिद करता है। कभी एक दिशा में जाने की जिद करता है, तो कभी दूसरी दिशा की तरफ जाने का आग्रह करता है। ऐसे अवसर पर ही हमारी परीक्षा होती है। तब इंसान को बुद्धि रूपी सारथी की आवश्यकता होती है। यदि हम बुद्धि रूपी सारथी की लगाम का उपयोग नहीं करेंगे, तो लगाम ढीली पड़ जाएगी और घोड़े अनियंत्रित हो जाएँगे। इसलिए जीवन में मर्यादाओं की, व्रत-नियमों की रूरत होती है। कभी विफल हो जाओ तब भी चिंता मत करना। दस बार प्रयास करोगे, तो ग्यारहवीं बार चंचल घोड़े आपके नियंत्रण में आ ही जाएँगे। ज्ञान रूपी, बोध रूपी सारथी की जरूरत है। निरंतर अभ्यास से सारी चीजें सध जाती हैं - करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान । मन पर नियंत्रण से इसकी गति सही दिशा में बढ़ेगी। गलत दिशा में जाने वाली इंद्रियाँ सही सोच के साथ सात्विक विचारों पर अमल करने लगेंगी। माना कि मन भटक जाता है, लेकिन उस पर सही अंकुश हो, तो उसे लाइन में लाया जा सकता है। घोड़ों को सही समय पर ऐड़ लगाई जाए, तो वे उसी हिसाब से चलते हैं।
एक राज्य में संत जिनदास जी रहा करते थे। वहाँ के राजा ने एक बार प्रसन्न होकर उन्हें एक घोड़ा भेंट कर दिया। घोड़ा समझदार था। संत सुबह उस पर सवारी के लिए निकलते। वह संत की कुटिया से रवाना होकर कबूतरखाने पहुँच जाता । वहाँ संत कबूतरों को दाना डालते। फिर घोड़े को एक ऐड़ लगाते, घोड़ा वहाँ से रवाना होकर मंदिर पहुँच जाता। वहाँ संत पूजा करते और बाहर निकल कर घोडे को ऐड लगाते, तो वह संत की कुटिया पहुँच जाता। इतना बढ़िया घोड़ा। इस घोड़े की ख्याति पड़ोसी राजा
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