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________________ चाहते हो ?' वह आदमी बोला, 'भगवान मेरी फैक्ट्री चलवा दो।' आदमी इससे ऊपर उठ ही नहीं पाता । भगवान को साक्षात् देखकर उसे भगवत्ता या मोक्ष माँगना चाहिए था, लेकिन वह तो अब भी फैक्ट्री में ही फँसा है। इसलिए प्रभुता का आनन्द लो। यह आनन्द तो नचिकेता जैसे लोग ही ले पाएँगे। अशांत व्यक्ति लालसाओं के भंवर में ही डूबता - उतरता रहेगा । वह यश, यौन, ज़मीन, स्वाद और नींद की कामनाओं में ही उलझा रहेगा । अशांति और दुराचार आत्म-तत्त्व की प्राप्ति में बाधक रहेंगे । 1 -न एक बात मान कर चलो। प्रभु जो भी कार्य करता है, उसमें हमारा कोई-न-कोई भला छिपा रहता है । बस, हम समझ नहीं पाते क्योंकि हम वहाँ तक सोच नहीं पाते। जो कुछ भी होता है, उसमें प्रभु की मंशा रहती है । हम अपनी तुच्छ बुद्धि के कारण उसे समझ नहीं पाते। प्रभु हमारा अहित कभी नहीं करते। हमारी हर चीज़ के पीछे कोईकोई हित छिपा रहता है। किसी ने मकान बनवाया, गृह प्रवेश किया। अचानक मकान ध्वस्त हो गया, आप रोने लगे। कभी ऐसा कुछ हो जाए, तो विचार करो कि इसमें प्रभु की कोई-न-कोई मंशा रूर है। भगवान यही चाहता है तो यही सही । भगवान सर्वज्ञ हैं। उन्हें हमारे बारे में सब कुछ पता है। भगवान से ज़्यादा भी मत माँगना । वे सब जानते हैं। उन्हें पता है कि किसको क्या देना है, किससे क्या लेना है ? भगवान ने तुम्हें अगर कुछ नहीं दिया है, तो उसमें भी उनकी रज़ा समझना । आपके लिए उन्होंने तय कर रखा है कि कब देना है ? बस, आप अपनी प्रार्थना में कमी मत रखना। श्रद्धापूर्वक प्रभु की हर इच्छा का सम्मान करें । हे प्रभु, तुम जो चाहते हो, हम उसी में राज़ी हैं। तुम हमें जिस हाल में रखना चाहते हो, हम उसी में ख़ुश हैं । इतना विचार करते ही देखना, वह हम पर किस तरह अपना अनुग्रह बरसाना प्रारम्भ करते हैं। मनुष्य चाहता है कि अमुक काम होना ही चाहिए। प्रभु हमारे गुलाम थोड़े ही हैं। उन्हें तो अपना संरक्षक बनाने की जरूरत है। उनकी रज़ा में राज़ी रहो। प्रभु ने आपको जो भी दिया है, उसमें ख़ुश रहो । अशांत, असंयमित, अस्थिर मत रहो । जिनका मन चंचल है, उन्हें आत्म-तत्त्व की प्राप्ति नहीं हो सकती। ऐसे लोग आत्म-तत्त्व का साक्षात्कार कैसे कर पाएँगे ? हमारे पास जो कुछ भी है, उसमें ख़ुश रहना सीखो, हर चीज़ के बारे में संयमित दृष्टिकोण रखो। जीवन के नाम पर हमारे पास आने वाली मृत्यु ही तो परमात्म-तत्त्व की प्राप्ति से हमें वंचित रख रही है। धन, जमीन-जायदाद तो शरीर की तरह ही नश्वर तत्त्व हैं; फिर भी हर इंसान इनके पीछे भागता रहता है। हर समय कुछ-न-कुछ एकत्र करने में लगा रहता है । इस तरह के सामान के प्रति भी आसक्ति टूटनी चाहिए । तीन जनों के मन में सवाल उठा कि मृत्यु क्या है ? मृत्यु से साक्षात्कार कैसे हो सकता है ? वे इसका उत्तर पाने के लिए एक गुरु के पास गए। उनके सामने सवाल रखा Jain Education International 208 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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