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दोस्ती कर ली। हमारे स्वर्ग-नर्क हमारे भीतर ही हैं। गिरते भी हम ही हैं और ऊपर उठते भी हम ही हैं। तुम ही अपने मित्र हो और तुम ही अपने शत्रु। बुनियादी रहस्य है-'तेरो तेरे पास अपने मांही टटोल।' हम अपने भीतर देखने के आदी नहीं हैं, बाहर ही बाहर देखते हैं; इसीलिए तो विफल हो जाते हैं। संतों के भी ज्ञान देने के अपने-अपने तरीके होते हैं । सूफी संत राबिया के बारे में अनेक कहानियाँ कही-सुनी जाती हैं। एक बार राबिया के यहाँ कुछ संत ज्ञान की चर्चा करने आए। राबिया ने उन्हें कहा, 'ज़रा थोड़ी देर घूम आइए, शाम को चर्चा करेंगे।' संतों की टोली वापस लौटी, तो उन्होंने देखा कि राबिया अपनी झोपड़ी के बाहर कुछ ढूँढ़ने का प्रयास कर रही थी। संतों ने पूछ लिया, 'क्या ढूँढ रही हो राबिया?' राबिया ने बताया, 'मेरी सूई खो गई है, उसे ही ढूँढ रही हूँ।' काफी देर हो गई और अंधेरा घिर आया तो संतों ने पूछ लिया, 'राबिया, तुम्हारी सूई कहाँ खोई थी?' राबिया ने कहा, 'सूई तो झोंपड़ी के भीतर खोई थी।' तब संतों ने ठहाके लगाते हुए पूछा, राबिया, हम तो समझते थे तुम विदुषी हो, ज्ञानी हो, लेकिन तुम तो झोंपड़ी के भीतर खोई सूई को बाहर ढूँढ रही हो।' राबिया ने पलटकर संतों से कहा, 'आप लोग भी तो उस नूर को ढूँढ़ने के लिए जंगलों में भटक रहे हो। जो तुम्हारे भीतर ही है और तुम लोग पता नहीं उसे कहाँ-कहाँ ढूँढ़ रहे हो।' ज्ञान देने का राबिया का यह तरीका था।संतों की आँख खुल गई। उनकी अपने-आप से मुलाकात हो गई।
यमराज नचिकेता को कठोपनिषद के माध्यम से समझा रहे हैं कि हम अपनी पहचान कैसे करें? अपना बोध कैसे करें? इसीलिए तो नचिकेता यमदेव से सारी बातें कुरेद-कुरेद पर पूछ रहे हैं। वे गुरु की शरण में आए हैं तो गुरु के पास जितना ज्ञान है, उसे पा लेना चाहते हैं । यमराज नचिकेता को आधार बनाकर हमें सम्बोधित कर रहे हैं। कठोपनिषद् का यह श्लोक वजनदार है, इसमें रहस्य उद्घाटित हुआ है कि यह आत्मा हमें कैसे प्राप्त हो सकती है ? यमराज कहते हैं, 'यह आत्मा न तो प्रवचन से, न बुद्धि से, न बहुत सुनने से ही प्राप्त हो सकती है। जिसको यह स्वीकार कर लेती है, उसके द्वारा ही प्राप्त की जा सकती है। यह आत्मा उसके लिए अपने यथार्थ स्वरूप को प्रकट कर देती है।' यह आत्मा हमें तब ही उपलब्ध हो सकती है जब हम प्रभु की कृपा के पात्र बनते हैं। प्रभु की कृपा के बिना प्रभु को उपलब्ध नहीं किया जा सकता। चाहत तो खुद की ही काम आएगी। केवल प्रवचन सुनने से आत्मा उपलब्ध नहीं हो पाती। कथाएँ कितनी भी क्यों न सुन लो, पर कितने लोग आत्मा को उपलब्ध कर पाते हैं। इसे कोरी बुद्धि से भी नहीं प्राप्त नहीं किया जा सकता। यह तो अपनी इच्छा से ही प्रकट होती है।
पहली बात तो यह है कि हमारी आत्मा हमसे जुदा नहीं है। आत्मा यानी हम, और हम यानी आत्मा। आत्मा हमसे जुदा हो भी कैसे सकती है, उसके बिना हम जीवित कैसे रह सकते हैं? हमारे तीन मुख्य आधार हैं - शरीर, मन और आत्मा। यह आत्मा ही तो है, जो हमारे शरीर को ऊर्जा देती है। हमें शरीर का तो ज्ञान है, लेकिन आत्म-तत्त्व के बारे
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