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हटाने के लिए तू ही कुछ कर'। भगवान को छोटी-छोटी चीजों के लिए परेशान थोड़े ही किया जाता है।
अपने आपको ॐ की शरण में छोड़ दो, तो शेर भी चुपचाप चला जाता है क्योंकि तब हमारी रक्षा का जिम्मा प्रभु का हो जाता है। पिता-पुत्र साथ जा रहे हों और पुत्र पर कोई विपदा आ जाए, तो इज्जत तो पिता की ही जाएगी। इसी तरह भक्त परेशान होगा, तो उलाहना तो भगवान को ही मिलने वाला है। ईसाई गले में क्रॉस पहनते हैं। कोई विपदा आती है, तो क्रॉस को आँखों से लगाते हैं, उसे चूमते हैं । प्रभु तब रक्षा करने आते हैं। क्रॉस को चूम लिया यानी प्रभु का हाथ थाम लिया, अब सारी जिम्मेदारी उनकी। क्रॉस को छूने मात्र से आत्म-विश्वास आ गया कि संकट में यह मददगार बनेगा। इसीलिए मैं ओम् के लॉकेट का संकेत कर रहा हूँ। कोई-न-कोई मंगलप्रतीक गले में ज़रूर रखें। प्रतीक वही हो, जिसे आप श्रद्धा से स्वीकारें । ओम् तो स्वयं पंच परमेष्ठि का वाचक है। इसे गले में धारण करें, इससे आपकी शक्ति बढ़ेगी। आपको बुरी नज़र नहीं लगेगी। ओम् रक्षा कवच है। बच्चे को बुरी नजर न लगे, इसलिए उसकी माँ उसके गले में काली डोरी बाँध दिया करती है, उसके माथे पर काली टीकी लगा देती है। इसी तरह ओम का लाकेट आपका रक्षा-कवच बन जाएगा।
__ साधना के मार्ग पर ओम् की उपासना करें। जिस अक्षर को आप सत्य मानते हैं, उसकी साधना करें। ओम् ब्रह्म का परिचायक है। एक हिन्दू भले ही परम्परा की दृष्टि से महावीर को न माने, एक जैन भले ही महादेव को न माने, लेकिन ओम् को सभी स्वीकार करते है। ओम् में खुदा है । ओम् से नहीं कोई जुदा है । ओम् अकेला ऐसा अक्षर है, जिसे आप जिस भाव से स्वीकार करेंगे, यह वैसा ही फल देगा। इन्द्र की आराधना करनी है, तो ओम् इन्द्राय नमः कहते हैं। सूर्य की उपासना करनी है, तो ओम् सूर्याय नमः कहते हैं। किसी भी उपासना के लिए ओम् को जोड़ लेंगे, तो आपकी शक्ति और आराधना दुगुनी हो जाएगी। इससे मंत्र की शक्ति अपने-आप बढ़ जाती है। ओंकार की साधना कैसे करें? इस एक शब्द में तो सारे वेद, चराचर जगत् समाहित हैं। ओंकार की साधना चार प्रकार से हो सकती है- उच्चारण, स्मरण, दर्शन और परा। पहले ओंकार का उच्चारण करें। शंखध्वनि की तरह ओंकार का उद्घोष करें तब तक, जब तक कि आपके अंतर्मन और ओंकार में एकलयता न आ जाए। स्मरण मन-ही-मन करें। मन भटकने लगे, तो माला हाथ में ले लें। एक आधार हो जाएगा। ओम् की साधना का सीधा-सा तरीका है। मन में उच्चारण करो, मन न लगे तो किसी एकांत में चले जाओ। किसी मंदिर के गुम्बद के नीचे बैठ जाओ, वहाँ तुम जो कुछ बोलोगे, उसकी प्रतिध्वनि तुम तक लौट आएगी। बार-बार ऐसा होगा, तो आपके ऊपर ओम् का एक
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