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हैं, लेकिन आत्म-ज्ञानी, तत्त्व - ज्ञानी समझता है । मर्म समझते ही परतें खुलती चली जाती हैं, अन्यथा यह जीवन अनन्त ज्ञान से भरा है। केवल किताबी ज्ञान से काम नहीं चल सकता। हमें जीवन की हर घटना को, प्रकृति की हर व्यवस्था को समझने की आवश्यकता है।
निष्कर्षतः यही ज्ञान है, यही तत्त्व - बोध है। इंसान परिवर्तन के साथ स्थिर नहीं रह पाता। यही तो उसका अज्ञान और अविद्या है। मर्म समझ लेंगे, तो किसी भी चीज़ या परिस्थिति से प्रभावित होना कम होता जाएगा। कुछ लोगों को उपेक्षा बर्दाश्त नहीं होती। कुछ को क्रोध ही नहीं आता, चाहे कुछ भी हो जाए, वे क्रोध से अप्रभावित रहते हैं। क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो । उसको क्या जो दंतहीन, विषरहित, विनीत सरल हो ।
एक बार ऋषियों के बीच चर्चा चल पड़ी कि कौन है जो भगवान को गुस्सा दिला सकता है । किस भगवान का गुस्सा कैसा है ? इसकी पहचान का काम भृगु ऋषि को सौंपा गया। भृगु सबसे पहले ब्रह्माजी के पास गए। वे ब्रह्माजी की बगल में बैठ गए। ब्रह्माजी को आश्चर्य हुआ । बिना अनुमति के यह कौन है जो मेरे कमल पर आकर बैठ गया है, लेकिन वे कुछ बोले नहीं। गुस्सा तो उन्हें आया, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की । भृगु वहाँ से निकले, शिव के पास कैलाश पर्वत गए और जाकर सीधे उनकी गोद में बैठ गए। शंकर को गुस्सा आया, वे भृगु को मारने दौड़े। पार्वती ने बड़ी मुश्किल से उन्हें बचाया । महादेव शांत हुए। शंकर को गुस्सा आया और उन्होंने प्रतिक्रिया भी व्यक्त कर दी। यहाँ से भृगु विष्णु के यहाँ पहुँचे, आव देखा न ताव, उन्होंने सीधे ही विष्णु की छाती में लात मार दी। भृगु उनकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार करने लगे, लेकिन यह क्या, भगवान विष्णु तो ब्रह्मा और शिव से भी आगे निकले। उन्होंने तत्काल भृगु के पाँव पकड़े और उन्हें दबाने लगे। उन्होंने पूछा, ऋषिप्रवर! आपके नाजुक से पाँवों को चोट तो नहीं आई। तभी तो कहा गया, क्षमा बड़न को चाहिए, छोटन को उत्पात, का विष्णु को घटि गयो, जो भृगु मारी लात । किसी भी घटना की प्रतिक्रिया तो हरेक के मन में होती है लेकिन उसे व्यक्त हर कोई अपने-अपने तरीके से करता है । कषाय, क्रोध, भोग, काम, अहंकार हम पर इतने हावी हैं कि हर किसी के मन में इन्हें लेकर प्रतिक्रिया तो होती ही है । कोई कम प्रतिक्रिया करता है, तो कोई ज्यादा । एक व्यक्ति सब्जी में नमक कम हो तो पत्नी पर गर्म हो जाता है, गाली-गलौच करता है; दूसरा व्यक्ति चुपचाप नमक माँग लेता है। तीसरा इससे भी आगे बढ़कर जैसी है, वैसी ही सब्जी से चला लेता है। जिसका जितना ज्ञान, वह वैसा ही व्यवहार करेगा । दोषी कोई और नहीं, हमारा अज्ञान दोषी है, हमारा मिथ्यात्व दोषी है । तत्त्व- ज्ञान का अभाव होना इसका मूल कारण है ।
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