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हृदय के साथ जीना होगा। जीवन में सफलता प्राप्त करनी है, तो बुद्धि रूपी गुफा में प्रवेश करना ही होगा। बुद्धि ज्ञान से और हृदय आत्मा से जुड़ा है। इसी तरह तीसरा चरण है - नाभि । यह सृजन का क्षेत्र है। नीचे के तत्त्व नाभि से जुड़े रहते हैं, यद्यपि यह सृजन का क्षेत्र है, लेकिन सृजन यहीं से होता है तो विसर्जन भी यहीं से होता है। ये दूषित तत्त्व हैं। इसलिए इन तत्त्वों पर कम ध्यान दें। नाभि से ऊपर हृदय तक नज़र रखें। ये व्यक्ति के आत्म-प्रदेश हैं, ब्रह्म केन्द्र हैं। हृदय हमारा धाम है। असली मंदिर हृदय ही है। वहाँ न तो कोई हिन्दू है और न ही कोई मुसलमान; न कोई सिक्ख है और न ही कोई ईसाई। ये सब बाहर की व्यवस्थाएँ हैं, सामाजिक व्यवस्थाएँ हैं। आत्म-साधक समाज का नहीं होता, समाज उसके लिए होता है । दीया सूरज को रोशनी दिखाने जाएगा तो क्या होगा? आत्म-ज्ञानी पर समाज अंकुश लगाना चाहेगा तो गलती करेगा।
सिकंदर ने भी ऐसी गलती की। किसी देश में उसका पड़ाव था। उसके कुछ सिपहसालार भारत जा रहे थे। सिकंदर ने उनसे कहा, लौटते समय भारत से किसी औलिया-फ़क़ीर को ले आना। सिपहसालार बहुत प्रयास करते हैं, लेकिन कोई औलिया-फ़क़ीर उनके साथ चलने को तैयार नहीं होता। सिकंदर खुद जब भारत आता है, तो यहाँ के एक औलिया फ़क़ीर से कहता है, हमारे साथ चलो, मैं तुम्हें लेने आया हूँ। फ़क़ीर कहता है - हमें ले जाने वाला तो यमराज है। बाकी हमें कोई नहीं ले जा सकता। सिकंदर ने कहा - मैं महान सम्राट सिकंदर हूँ। मैंने दुनिया को जीता है । तेरी तो औकात ही क्या है ? फ़क़ीर हँसा । वह उससे पूछता है - दुनिया को जीतने वाले ऐ सिकंदर, क्या तुमने खुद को भी जीता है ?
___ यह सुनते ही सिकंदर क्रोध से तमतमा उठा। सिकंदर ने अब तक तलवारों से जीतने की कला जानी थी। तलवारों से तो औरों को ही जीता जा सकता है। तलवार से खुद पर विजय प्राप्त नहीं की जा सकती। खुद पर विजय पाने के लिए तो व्यक्ति को अपने भीतर महावीरत्व का फूल और बुद्धत्व का कमल खिलाना होता है। अपने गुस्से को अपने काबू में रखना होता है, अपनी वासनाओं पर विजय पानी होती है, अपने राग-द्वेष के दलदल से बाहर निकलना होता है। .
__ कोई सिकंदर फ़क़ीर पर लाल-पीला हो, इससे फ़क़ीरों को क्या फ़र्क पड़ता है! वे तो अपनी फ़क़ीरी में ही मस्त रहते हैं। सिकंदर ने क्रोध में भरकर कहा, ऐ फ़क़ीर! मेरी मज़ाक उड़ाने के जुर्म में मैं तुम्हें मार भी सकता हूँ। फ़क़ीर ने कहा - तुम क्या मारोगे? जिसे तुम मारोगे, वह तो अभी भी मरा हुआ ही है। हम तो अमर हैं, हम मारे भी नहीं मरेंगे। वह फ़क़ीर तो सिकंदर के सामने नाचने लग गया। मानो उसके भीतर कोई इंद्रधनुष की छटा बिखर पड़ी हो। फ़क़ीर मस्त था। मौत को करीब आया देख दुगुना
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