________________
___ मैं उपनिषदों का सम्मान करता हूँ, आगमों और पिटकों का पारायण करता हूँ। ये उपनिषद्, आगम या पिटक हमारे लिए ज्ञान-पुंज की तरह हैं। यदि परम्परा का प्रकाश पाना है, तो अपनी परंपरा के शास्त्र ही पढ़ो, पर अगर ज्ञान का प्रकाश पाना है, तो अपने भीतर की खिड़की खोल डालो। आख़िर पैराशूट पूरा खुलने पर ही हमारी हिफ़ाज़त करता है। हमेशा याद रखो, किसी भी शास्त्र में कोई भेद नहीं है। महावीर ने एक बहुत दिव्य सिद्धांत दिया, जिसका नाम है अनेकांत। अनेकांत का मतलब है, दुराग्रह-मुक्त सत्य का दर्शन। अनेकांत यानी तुममें भी सच्चाई और जिन्हें तुम पराया कहते हो, उनमें भी सच्चाई। अनेकांत यानी दूसरों की सच्चाई का विनम्रतापूर्वक किया जाने वाला सम्मान। ___ महावीर दुनिया में इसीलिए महान हैं कि उन्होंने अपने सत्य का दुराग्रह नहीं किया, वरन् उन्हें जहाँ, जिनमें भी सच्चाई की रोशनी मिली, उन्होंने उन सबको स्वीकार किया। शायद यह जो विशेषता महावीर में थी, मुझमें भी साकार हो गई। यही वजह है कि मुझे कोई शास्त्र गैर नहीं लगता। दुनिया की हल्की-से-हल्की किताब में भी कोई-न-कोई अच्छाई तो अवश्य होती ही है। आप आलोचना की दृष्टि को हटा दो और एक गुणानुरागी बनकर किसी जिज्ञासु की तरह इनके सामने पेश आओ। याद रखो, यदि हमारे भीतर कोई प्यास है, तो गाँव का कुआँ भी हमें गंगा-स्नान का आनंद दे देगा।
जब-जब भी व्यक्ति में अध्यात्म की अभीप्सा जगी है, तब-तब इन शास्त्रों ने उसकी अभीप्सा शांत करने में मदद की है। भविष्य में भी करते रहेंगे। उपनिषद् भारत की नींव हैं। आत्म-ज्ञान और ब्रह्म-विद्या जानने के लिए हमें उपनिषदों की शरण में आना होगा। जिन उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले लोग गुरुकुलों में जाकर अध्ययन किया करते थे, अब वे उपनिषद् हमें सहज रूप में ही उपलब्ध हो रहे हैं।
ज़रा विचार कीजिए कि किसी रोशनी को प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को जहाँ हिमालय की हजारों किलोमीटर की यात्रा करनी पड़े, यदि वही रोशनी इंसान के घर की दहलीज़ पर लाकर रख दी जाए तो हम उसे क्या कहेंगे? यह हमारा सौभाग्य ही है कि हमारी देहरी पर ज्ञान का दीपक, ज्ञान का सूरज उतर आया है। लोगों को गंगाजी में स्नान करने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यदि वही गंगा हमारे घर-आँगन में पहुँच जाए, तो हम यही कहेंगे कि हे प्रभु, तुम्हारी महती कृपा हुई। जिसे पाने के लिए हमारे बुजुर्गों ने भगीरथ प्रयास किए थे, वह अनायास हमारे द्वार तक आ पहुँची है।
11
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org