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________________ कठोपनिषद् : मुमुक्षुओं के लिए अमृत आज से हम एक ऐसे उत्तुंग शिखर की ओर अपने क़दम बढ़ा रहे हैं जिसकी उजास और ऊँचाई उन लोगों के लिए बेहद उपयोगी है, जिनमें ऊँचाइयों को छूने का जज्बा है। दुनिया में शिखर तो कई हैं लेकिन ऐसे शिखर कम ही हैं, जहाँ से इंसानियत को आध्यात्मिक ऊँचाई देने का पैग़ाम मिलता हो। यदि हम एवरेस्ट की बात करें, तो वह सिर्फ़ ज़मीनी ऊँचाई की बात होगी, लेकिन हम जिस शिखर की बात कर रहे हैं, वह मनुष्य के ज्ञान का शिखर है, इंसान के अध्यात्म का, आध्यात्मिक ऊँचाई का शिखर है। दुनिया में दो तरह का ज्ञान होता है - एक तो सांसारिक ज्ञान और दूसरा आध्यात्मिक ज्ञान। सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए व्यक्ति एम.ए., एम.फिल. या एम.बी.ए. के रास्ते पर चलता है, लेकिन अध्यात्म का ज्ञान प्राप्त करने के लिए हमें किसी आध्यात्मिक गुरु के सान्निध्य में चलना होता है; ऐसे गुरु के सान्निध्य में, जिन्होंने निरंतर चिंतन और साधना करते हुए अपने भीतर के प्रकाश को उपलब्ध किया है। जो मिट्टी के दीये नहीं रहे, बल्कि स्वयं ज्योति-स्वरूप हो गए। प्रकाश की धन्यता इसी में है कि वह केवल स्वांतः सुखाय ही प्रकाशित न हो, बल्कि जो भी उसके सान्निध्य में आए, वह भी प्रकाशित हो जाए। ___ हमें ऐसे लोगों के साथ रहना चाहिए जिनका दीप जला हुआ है। गुरु उसे ही कहते हैं, जिनके संस्पर्श से, जिनके सत्संग से, जिनके पास बैठने मात्र से हमारे भीतर आध्यात्मिक शांति और आध्यात्मिक हिलोर जागने लगती है। जीवन में गुरु का संयोग मिलना, एक अद्भुत क्रांति की बात है। जन्म-जन्मांतर के पुण्य जगते हैं, तो ही सद्गुरु का योग बन पाता है। यूं कहने में तो हर कोई अपने आपको गुरु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003862
Book TitleMrutyu Se Mulakat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2011
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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