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________________ खुशी नहीं, लाख चले जाएं तो कोई रंज या गम नहीं। जीवन में घटित होने वाली आधी घटनाएं ऐसी होती हैं। जिनके लिए यह सोचना हितकारी है कि भगवान जो करता है, अच्छे के लिए करता है । अगर कुछेक घटनाओं के लिए हम यह सोच न बना पाएं तो यह सोचकर मन को सांत्वना दे सकते हैं कि जीवन में वही होता है जो होना होता है। जो हुआ, अच्छा हुआ स्वेट मार्डन दुनिया के महान चिंतक हुए हैं। जब वे बीस वर्ष के थे तो किसी लड़की के चक्कर में पड़ गए। दोनों का प्रेम दो-तीन वर्ष तक चलता रहा। स्वेट मार्डन उस लड़की को प्राणों से ज्यादा चाहने लगे, लेकिन एक दिन अचानक खबर मिली कि स्वेट मार्डन जिस लड़की से बेहद प्यार करते थे, उसने दूसरे से शादी कर ली। स्वेट मार्डन भीतर से टूट गये। उन्हें इतना धक्का लगा कि खाना-पीना छूट गया, नींद हराम हो गई, धंधा छूट गया। कहते हैं उन्होंने घर से निकलना भी बंद कर दिया। घर में पड़े रहते। सोचते 'ईश्वर ने मेरे ही साथ ऐसा क्यों किया । आखिर, जिसके लिये मैं कुछ भी करने को तैयार था उसने मुझे धोखा क्यों दिया।' दो साल तक वे इन्हीं चिंताओं से घिरे रहे । चेहरे पर दाढ़ी बढ़ गई, चेहरा सिकुड़ गया, शरीर कमजोर हो गया । स्वेट मार्डन घर के पिंजरे में ही कैद होकर रह गये । एक दिन उन्होंने सुबह के अखबार में पढ़ा कि एक युवक ने आत्महत्या कर ली। जब उन्होंने संपूर्ण विवरण पढ़ा तो पता लगा कि वह युवक उसी युवती का पति था जिसके प्रेम में वे पागल थे। समाचार था कि वह लड़की बहुत क्रोधी स्वभाव की थी, उसके गुस्से से तंग आकर उस युवक ने आत्महत्या कर ली थी। उसने मरने से पहले नोट लिखा कि, 'मुझे इतनी गुस्सैल पत्नी मिली है कि मैं सहन नहीं कर पा रहा हूं और आत्महत्या कर रहा हूं।' स्वेट मार्डन जो अब तक उदासी के समंदर में डूबे थे, एकदम किनारे आ लगे कि, 'ओह ! ईश्वर जो करता है अच्छे के लिये करता है।' अगर मैं उस लड़की से शादी कर लेता तो आज अखबार में मेरी आत्महत्या करने की खबर होती । शुक्रिया, या रब अच्छा किया आपने बचपन में एक कहानी सुनी होगी कि एक राजा का अंगूठा कट गया। उसने यह बात मंत्री को बताई । मंत्री ने कहा, ' उदास न हों राजन् जो होता है अच्छे के लिये होता है।' राजा यह बात सुनकर क्रोधित हो गया उसका तो अंगूठा कट गया है और मंत्री कह रहा है जो होता है अच्छे के लिये होता है। उसने मंत्री को कारागार में डलवा दिया। कई दिन बीते, राजा जंगल में शिकार खेलने गया । सैनिक इधर-उधर भटक गये वह अकेला चलता फिरता आदिवासियों की एक बस्ती में पहुंच गया। क्या जानें कि कौन राजा कौन प्रजा ! उन्होंने उसे पकड़ लिया क्योंकि उन्हें किसी न किसी आदमी की बलि देनी थी। उनके गुरु ने कहा था कि अपना कार्य सिद्ध करना चाहते हो तो किसी श्रेष्ठ पुरुष की बलि दो, तुम्हारा काम सिद्ध हो जाएगा। आदिवासी उस राजा को पकड़कर गुरु के सामने लाए और कहा, 'लीजिए इसकी बलि दीजिए।' राजा ने 48 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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