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________________ पार्टनर ने उसे धोखा दे दिया और उसकी आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई। उसके बावजूद भी उसके जीवनयापन में कोई कमी नहीं थी फिर भी मैंने देखा कि दो वर्षों से वह निरन्तर कमजोर होता जा रहा था और उसका चेहरा बिल्कुल रोगी की तरह हो गया था। बातचीत में खबर लगी कि उस व्यक्ति के मन में एक ही मलाल था कि मैंने उस व्यक्ति पर जीवन भर अहसान किया किन्तु उसने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? बार-बार इसी तरह की बातें सोच-सोच कर और अपनी अतीत की बातों को याद कर वह व्यक्ति चिंताग्रस्त हो गया। मैंने समझाया कि बीता हुआ समय कभी लौटाया नहीं जा सकता। इसलिए व्यर्थ के विकल्पों में गोते खाने की बजाय जैसी वर्तमान में स्थिति है उसे स्वीकार करो और वर्तमान को सुधारने का प्रयास करो । दुनिया में जितनी भी ध्यान की विधियाँ हैं, उनका मुख्य चिंतन वर्तमान से ही जुड़ा हुआ है क्योंकि अतीत का दर्शन चिंता है, पर वर्तमान का दर्शन चिंतन है। चिंताग्रस्त व्यक्ति को चाहिये, वह अकेला कम से कम रहे। चिंतनशील व्यक्ति अगर अकेला रहेगा तो बद्ध बन जायेगा पर चिंताग्रस्त व्यक्ति के लिए एकाकीपन घातक है। अच्छा होगा निठल्ले बैठने की बजाय सदा कर्मयोग में लगे रहें। अकेलेपन में निरर्थक बैठने से चिंताओं का अम्बार लगता है, और ये प्रभावी होकर हम पर हावी होने लगती है। अगर किसी कारणवश चिंता के चक्रव्यूह में फंस गये हैं तो भीतर ही भीतर घुटने की बजाय अपने मन की बात अपने किसी मित्र को कह डालिये ताकि आपका मन हल्का हो जाएगा। नहीं तो ईश्वर को अपना सब कुछ मानकर किसी मंदिर में जाकर प्रतिमा के सामने अपना सब कुछ कह डालिये। अथवा किसी बगीचे में जाकर पेड़-पौधे को अपना मन का मीत मानकर सारी बात कह डालिये। पेड़ पौधों में एक खासियत होती है कि वे तुम्हारी सभी बातें प्रेम से पचा लेते हैं। परिणाम यह होगा कि तुम अपनी बात भी कह दोगे और तुम्हारी बात इधर-उधर भी न होगी। बीते कल की घटनाओं को ज्यादा याद मत कीजिये। और न ही भविष्य की अनहोनी आशंका की डरावनी छाया से डरिये । जीवन में हिम्मत और आत्मविश्वास हर पल जरूरी है। अगर समस्याओं ने आपको घेर लिया है तो धैर्य रखिये। समस्याओं के गट्ठड़ में से दो पतली लकड़ियों की समस्याओं को चुनिये और उन्हें तोड़कर अपनी समस्याओं के भार को कम कीजिये। ऐसा रोज कीजिये आप समस्या और चिंता से मुक्त हो जायेंगे। चिंता नदे कोई हल इस दुनिया में कोई व्यक्ति चिंता करके समस्या का समाधान नहीं निकाल पाया है। जीवन में जो होता है उसे प्रेम से स्वीकार करो। यही सोचो कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। प्रकृति का सिद्धांत है जो जीवन देता है वह जीने की व्यवस्था भी देता है। अगर हम प्रकृति के सान्निध्य और उसकी गोद में जीने की कोशिश करें तो जान लेंगे कि जन्म देने से पहले प्रकृति हमारे लिए माँ का आंचल दूध से भर देती है। जब प्रकृति हरेक की व्यवस्था कर रही है तो हम किस बात को लेकर चिंताग्रस्त हों ! जीवन में जो हुआ है वह केवल आपके साथ ही नहीं हुआ, किसी के साथ भी वैसा हो सकता है। जो होता है अच्छे के लिए होता है । इसलिए लाख आ जाएं तो 47 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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