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________________ अगर आप किसी भी प्रकार के तनाव से ग्रस्त हैं तो आप तनावोत्सर्ग ध्यान करें। इस ध्यान की प्रक्रिया से गुजरना मन-मस्तिष्क के लिए काफी उपयोगी होता है । तनावोत्सर्ग ध्यान करने के लिए किसी शांत स्थान का चयन करें। ऐसा कोई स्थान या कमरा चुनें जहाँ किसी तरह का कोई व्यवधान न हो। वैन्टीलेटर के अलावा कमरे के दरवाजे एवं खिड़कियाँ बंद भी रख सकते हैं ताकि हल्का-सा अँधेरा हो जाये। यदि रात को कर रहे हों तो खिड़कियाँ खुली भी रखी जा सकती हैं। फर्श पर कोई आरामदेय आसन या गद्दा बिछा लें ताकि लेटने में तकलीफ न हो। सावधान रहें कि इस विधि से गुजरते समय ढ़ीले कपड़े पहनना ज्यादा उचित रहता है। अगर सर्दी हो तो कोई शाल भी ओढ़ सकते हैं और गर्मी हो तो हवा की व्यवस्था कर सकते हैं। आप तनावोत्सर्ग विधि प्रारम्भ करें। बड़े आराम से लेट जाएँ। दानों पाँव थोड़े फासले पर रहें, दोनों हाथ शरीर से थोड़े दूर और सीधे रखें, हथेलियाँ ऊपर की ओर हों। हथेलियाँ इतनी ढीली छोड़ दें कि अंगुलियाँ स्वत: ही थोड़ी-सी मुड़ जाएँ । इस विधि में कुछ बातों की सावधानी रखनी उचित रहती है। साँस आराम से और आहिस्ते-आहिस्ते लें और धीरे-धीरे उसे सहज छोड़ दें। साँस बाहर निकालने के बाद अंदर खींचने की जल्दी न करें और अंदर खींचने के बाद बाहर निकालने की भी जल्दी न करें। दोनों ही प्रक्रियाओं में आप जितनी सहजता से सांस को अंदर करने के बाद रोक सकते हैं तो अवश्य रोंके। सबसे पहले शरीर को ढीला छोड़कर मधुर मुस्कान लें। शरीर निर्जीव वस्तु की तरह पड़ा रहे और मधुर मुस्कान जारी रहे । अगर हँसने का जी कर रहा है तो किसी अच्छे से चुटकले या घटनाप्रसंग को यादकर हँस भी लें और फिर स्वसंबोधन द्वारा अपने शरीर को तनावप्रक्रिया में प्रवेश करने दें। -मुक्ति की धीरे-धीरे श्वास लेते हुए पूरे शरीर में कसावट दें। श्वास को रोकते हुए सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ समस्त माँसपेशियों को नाभि की ओर दो क्षण के लिए खिंचाव दें और तत्क्षण उच्छ्वास के साथ शरीर ढीला छोड़ दें । यह प्रक्रिया कुल तीन बार करें। अब शरीर के प्रत्येक अंग को मानसिक रूप से देखते हुए एक-एक अंग को शिथिल होने के लिए आत्म-निर्देशन दें और प्रत्येक अंग में प्रसन्नता और मुस्कुराहट को विकसति करें। पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक रोम-रोम को प्रमुदितता और अन्तर् प्रसन्नता का सुझाव दें। सर्वप्रथम पाँव के अंगूठे, अंगुलियाँ, तलवा, पंजा, एडी, टखना, पिंडली, घुटना, जाँघ, नितंब, कटिप्रदेश को शिथिल करते हुए वहाँ प्रसन्नता का संचार करें। फिर हाथ के अंगूठे, अंगुलियों, हथेली, पृष्ठ भाग, कलाई, हाथ, कोहनी, भुजा एवं कंधों को प्रसन्नता और मुस्कुराहट का सुझाव दें । तदुपरान्त पेट, पेट के अंदरूनी अवयव, बड़ी आँत, छोटी आँत, पक्वाशय, आमाशय, किडनी, लीवर तथा हृदय, फेंफड़े, पसलियाँ, पूरी पीठ, रीढ की हड्डी, कंठ और गर्दन के भाग में शिथिलता, प्रसन्नता एवं मुस्कुराहट को विकसित करें। इसके बाद चेहरे के एक-एक अंग - ठुड्डी, होंठ, गाल, आँख, कान, नाक, ललाट, सिर, बाल, मस्तिष्क और कोशिकाओं पर आनन्द भाव केन्द्रित करें और मन ही मन मुस्कुराएँ । आत्मनिरीक्षण करें और देखें कि यदि अब भी तनाव महसूस हो रहा है तो खिलखिलाकर हँसते हुए लोटपोट हो जायें और तनाव- - मुक्ति Jain Education International 29 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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