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________________ मानसिक रूप से हारा हुआ व्यक्ति मैदान में भी हारता ही है। हमारे जीवन की असफलताओं का पहला कारण है हमारी मानसिक कमजोरी। ____ तनाव-ग्रस्त व्यक्ति एक विशेष प्रकार की परेशानी से ग्रस्त होता है और हर समय उदास रहता है। अपने आप से ही अप्रसन्न रहना, खुद को हीन समझना और उन लोगों से दूर रहना जो हमारी प्रसन्नता के कारण हैं, ये सब तनाव के स्पष्ट प्रभाव हैं। उदासी और अप्रसन्नता से हमारी समझ. तर्कशक्ति और वैचारिक क्षमता कमजोर हो जाती है और हर समय व्यक्ति का दृष्टिकोण निराशावादी हो जाता है। ऐसा लगता है जैसे वह कुछ नहीं कर पाएगा। छोटी-मोटी बातों पर वह अपने-आपको अपराधी मानता है और उसका शरीर कुम्हलाया-सा हो जाता है। उसे भोजन करने के लिए पूरी भूख नहीं लगती और भोजन करने बैठ जाए तो भोजन स्वादिष्ट नहीं लगता। शायद मन की शांति का सुकून तो उसे सपने में भी नहीं मिल पाता। भरोसा रखें, प्रकृति की व्यवस्था पर ऐसा नहीं है कि तनाव से छुटकारा नहीं पाया जा सकता। आवश्यकता सिर्फ अपने आप पर नियंत्रण रखने की और अनुकूल वातावरण बनाने की है। उससे मुक्ति पाने के लिए जीवन में थोड़ा-सा परिवर्तन ही पर्याप्त होता है। आखिर कैसे बचें तनाव से-शायद हर व्यक्ति के भीतर यह प्रश्न उठता है। अगर थोड़ी-बहुत सावधानियाँ रखी जायें तो हम तनाव से बच सकते हैं। __ तनाव-मुक्ति का पहला उपाय है निश्चलता-'रिलेक्शेसन'। अगर आप चिंताग्रस्त या भ्रमित हैं, कई प्रकार के मानसिक दुःखों के शिकार हैं और परिणामस्वरूप शरीर में कई प्रकार के रोग प्रभावी हो गये हैं तो ऐसी स्थिति में निश्चलता, विश्राम, शरीरभाव से मुक्ति हमें रोग-मुक्त कर सकती है। पहले चरण में मैं मन की निश्चलता के बारे में कहना चाहूँगा। व्यक्ति सदैव यह सोचकर बेफिक्र रहे कि जो हुआ वह तो होना ही था इसलिए हो गया और जो नहीं हुआ उसका होना संभव नहीं था इसलिए नहीं हुआ। किसी वस्तु के मिलने पर गुमान न हो और खो जाने पर गिलान हो। प्रकृति की अपनी जबरदस्त व्यवस्था होती है और वह प्रायः हमारी हर जरूरत को पूरा करती है । बच्चा पीछे पैदा होता है और उसके लिए माँ के आँचल में दूध की व्यवस्था पहले होती है। दुनिया में असंख्य जानवर जन्म लेते हैं, प्रकृति उनकी भी व्यवस्था करती है। माना कि जानवर खेती नहीं कर सव य अपने लिए अन्न पाने के लिए जब खेती करता है तो धान पीछे आता है किंत जानवरों के लिए घास पहले उग आती है और इस तरह मनुष्य एवं पशु- दोनों के आहार की व्यवस्था प्रकृति द्वारा हो जाती है। करें, तनावोत्सर्ग-ध्यान तनाव से बचने या उबरने के लिए प्रतिदिन 15 मिनट ही सही भौंहों के बीच आज्ञाचक्र पर अपनी मानसिकता को एकाग्र करने की कोशिश करें। उससे हम 2-3 माह में ही तनाव से उबर जाएँगे। अगर आपको लगता है कि तनाव ने आपको गहरे जकड़ लिया है तो आप शरीर की निश्चलता का ध्यान करें। निश्चलता का अर्थ होता है शरीर की वह अवस्था जब हमारे सम्पूर्ण शरीर की माँसपेशियाँ और मस्तिष्क की सम्पूर्ण कोशिकाएँ पूर्ण विश्राम में हों। निश्चलता हमारी माँसपेशियों के तनाव को समाप्त करती है। 28 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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