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________________ हमारे पचास प्रतिशत रोगों का मूल कारण तनाव है। सावधान रहें, चाहे सिर दुख रहा है या पेट, जरूर इसके मूल में किसी प्रकार का तनाव ही जुड़ा होगा। शरीर में रोग होता है, रोगी डॉक्टर के पास जाता है और डॉक्टर रोग के लक्षणों के आधार पर दवा देता है। वह रोग तो दब जाता है पर नया रोग पैदा हो जाता है। मन को स्वस्थ किये बगैर जब भी तन का इलाज होगा- वह निष्प्रभावी ही होगा। इलाज तो पहले मन का हो और उसके बाद तन का | अच्छी सेहत के लिए तनाव-रहित जीवन सर्वप्रथम आवश्यक है । तनाव से घिरा हुआ व्यक्ति यदि व्यापार भी करेगा तो उसका व्यापार भारभूत बनकर उसे असफलता ही दिलाएगा। तनावग्रस्त विद्यार्थी की मानसिक क्षमता और एकाग्रता क्षीण हो जाती है वह रातभर जग कर पढ़ाई करता है, उसके बावजूद अनुत्तीर्ण हो जाता है । तनावग्रस्त व्यक्ति अगर मिठाई और पकवान भी खाए तो वे बेस्वाद हो जाते हैं, तनाव ग्रस्त व्यक्ति अपेक्षित परिणाम हासिल नहीं कर पाता है। वहीं जीवन का उत्साह, उमंग और आनंद जीवन की हर गतिविधि में जान डाल देता है । तनाव है घुन, बजाएँ शांति की धुन दुनिया में चाहे जितने आश्चर्य हों पर मानव मस्तिष्क से बड़ा आश्चर्य दूसरा नहीं हो सकता। लेकिन इंसान धोखा भी तो अपने इसी दिमाग के कारण खाता है । अस्वस्थ या असंतुलित दिमाग़ आदमी की सबसे बड़ी है। प्रकृति ने हमें प्रज्ञा - शक्ति, ज्ञान- शक्ति मस्तिष्क के रूप में प्रदान की हैं लेकिन कभी-कभी छोटी-सी चर्चा, छोटी-सी बात, छोटी-सी घटना या छोटा-सा अवसाद मनुष्य के भीतर उस घुन का काम करता है जो भीतर ही भीतर गेहूँ को खाकर समाप्त कर देता है। यह अवसाद, बेचैनी, घुटन, तनाव उस दीमक का काम करते हैं जिससे कि मनुष्य भीतर-ही-भीतर समाप्त हो जाता है। बाहर से अखंड दिखाई देने वाला शरीर अंदर से खंडखंड हो जाता है। यह रोग कभी भी लग सकता है। बचपन, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में। बुढ़ापे में अगर यह रोग लग गया तो इससे निजात पाना और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि तनावग्रस्त बूढ़ा व्यक्ति अनेक प्रकार की शारीरिक बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाता है । आज तनावरहित जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है। तनाव ने हमें शांति से जीवन जीना भुला दिया है। और हमारे जीवन के भावात्मक जुड़ाव को समाप्त प्रायः कर दिया है। अखूट ऐश्वर्य एवं वैभव की चाह तथा रातों-रात करोड़पति बनने की चाहत लोगों में तनाव और अवसाद पैदा कर रही है। हमारी आधुनिक जीवनशैली हमें कुछ घंटे या कुछ दिन तो सुख देती है, पर उससे जीवन में अनियमितताएं एवं विसंगतियाँ ही पैदा हो रही हैं । अनियमित जीवन-शैली के कारण लोग शारीरिक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं, उसी से मानसिक बीमारियाँ भी बढ़ी हैं और मनोरोग विश्वव्यापी समस्या बनता जा रहा है। हर तीसरे घर में तनाव और अवसाद ने अपनी जगह बना ली है। रोग-शोक का मूल : तनाव कोई व्यक्ति कितना भी सम्पन्न क्यों न हो, उसने भले ही शरीर पर आभूषण पहन रखें हों पर यदि थोड़ा Jain Education International 21 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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