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________________ कैसे सुलझाएँ मानसिक तनाव की गुत्थियाँ तनाव-मुक्ति के लिए मुस्कान वैसा ही सहारा है जैसे बूढ़े के लिए लांठी । हजार सुख-सुविधाएँ होने के बावजूद अगर आज का मनुष्य दुःखी और उदास नजर आता है तो जरूर वह किसी न किसी मानसिक अशांति से पीड़ित है। मनुष्य के पास इतनी सुविधाएँ कभी नहीं हुई होंगी जितनी आज हैं। इसके बावजूद हर मनुष्य के चेहरे पर एक विशेष प्रकार का शोक और द्वंद्व झलकता है। सब कुछ होने के बावजूद अगर मन की शांति और जीवन की प्रसन्नता गायब है, तो उसका मुख्य कारण हमारे अन्तर्मन में पलने वाला तनाव । तनाव हमारी मानसिक एकाग्रता को भंग कर देता है, जीवन की खुशहाली हमसे छीन लेता है । और तो और, दिन की रोटी और रात की नींद तक वह हराम कर देता है। आखिर यह तनाव क्या है, इसे जानबूझ कर क्यों पाला जाता है ? क्या हैं इसके परिणाम और कैसे इससे उबर सकते हैं ? आइए इन प्रश्नों के उत्तर हम अपने ही इर्द-गिर्द तलाशते हैं । रोगों का मूल, न दें इसे तूल हर व्यक्ति जो बाहर से स्वयं को स्वस्थ बता रहा है, वह जरा मानसिक निरीक्षण करे कि उसके भीतर कहीं तनाव का रोग छिपा हुआ तो नहीं है ? व्यक्ति पत्नी, परिवार और व्यवसाय से भी ज्यादा मानसिक उलझन, चिंता तथा तनाव से घिरा हुआ है। किशोर भी इसी तनाव से ग्रस्त हैं और वृद्ध भी। कोई जवान भी तो कहाँ बचा है। इससे ? कैंसर, एड्स और सार्स जैसी भयानक बीमारियाँ तो दुनिया में पाँच-दस फीसदी लोगों तक ही पहुँची हैं लेकिन तनाव ने तो हर किसी को घेर रखा है। दुनिया की एक प्रतिशत आबादी एड्स से ग्रस्त है, दो प्रतिशत आबादी कैंसर से ग्रस्त है, पांच प्रतिशत पोलियो से ग्रस्त है, दस प्रतिशत विभिन्न प्रकार के रोगों से ग्रस्त हो सकती है लेकिन शायद इन सबको भी मिलाकर तनाव का प्रतिशत ज्यादा ही होगा। इस रोग की पीड़ा और इसकी उलझन को तो वही जान सकता है जो इससे गुजरा है। दुनिया के किसी भी रोग से ज्यादा पीड़ादायी है तनाव का रोग जो जीते-जी व्यक्ति को मारकर ख़त्म कर देता है। Jain Education International 20 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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