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उसे संदेश ही न मिला हो। इसलिए कभी भी किसी के व्यवहार का ग़लत अर्थ न निकालें ।
आपको अपनी बातें दूसरों से कहने की आदत है, तो दूसरों की बातें सुनने की भी आदत डालें। घर में बच्चा भी है, पत्नी - बहु, बेटी भी है। उनकी बातों को नज़र अंदाज़ न करें। उनकी बातें भी धैर्यपूर्वक, शांतिपूर्वक सुनने का प्रयास करें । अगर आप दूसरों की बात सुनने की आदत डालेंगे तो आपको उसका व्यवहार नहीं चुभेगा । खुले दिल से करें तारीफ़
सफल व्यवहार के लिए अगला सूत्र है जीवन में ईमानदारी से औरों की प्रशंसा करें। चापलूसी की कोशिश न करें। ग़लती सभी से होती है, लेकिन उन पर टिप्पणी करने के बजाय, उनकी प्रशंसा करने की उदारता दिखाएँ। जो ग़लती नहीं करता उसे भगवान कहते हैं और जो गलती करके सुधर जाता है उसे इन्सान कहते हैं, लेकिन जो ग़लती पर ग़लती करे उसे शैतान कहते हैं । हम तो इंसान हैं, अपनी ग़लती को सुधारें और सच्चाईपूर्वक औरों की योग्यताओं की प्रशंसा करने की कोशिश करें। औरों की प्रशंसा करके ही अपने जीवन की प्रशंसा को पा सकते हैं । अपनी ग़लती को स्वीकार करने में सकुचाए नहीं। सावधानी रखें कि ग़लती न हो, फिर भी अगर ग़लती हो जाए तो उसे सहजता से स्वीकार कर लें। स्वीकार कर लेने से वह ग़लती न तो हमें कचोटती है और न ही घर के वातावरण को कलुषित करती है ।
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जीवन में कभी किसी का मज़ाक न उड़ाएँ। याद रखें हमारे पास वापस वही लौटकर आता है जो हम अपने द्वारा आज किया करते हैं । जीवन और कुछ नहीं एक इको साउण्ड जैसी व्यवस्था है। हम जैसा बोलेंगे वापस वैसा ही आएगा। किसी लंगड़े, अंधे, बहरे, गूंगे, व्यक्ति की मज़ाक उड़ाने की बजाय अच्छा होगा, हम उसके सहयोगी बनें। अगर हम सहयोगी बनेंगे तो वापस भविष्य में कभी हमें सहयोग मिलेगा और मज़ाक करना वापस मज़ाक बनकर ही लौटेगा। एक व्यक्ति जो किसी अंधे व्यक्ति की अंधेरी जिंदगी को देखकर हँस तो सकता है पर उसका हमदर्द नहीं बन सकता। वह व्यक्ति आधे घंटे तक अपनी आँख के आगे पट्टी बाँधकर देखे तो अनुभव होगा कि किसी अंधे व्यक्ति की ज़िंदगी कैसी होती है ।
मैं तो कहूँगा कि मज़ाक का भी एक सीमित मात्रा में उपयोग किया जाए ठीक वैसे ही जैसी सब्जी में नमक का उपयोग किया जाता है। सीमित मात्रा में डाला गया नमक जहाँ सब्जी में स्वाद देता है, वहीं बेहिसाब डाला गया नमक उसी सब्जी को बेस्वाद बना देता है। मज़ाक सलिके की हो तो चुभती नहीं है। नहीं तो कई बार कोई मज़ाक वैर की गाँठ का कारण बन जाता है और सामने वाला व्यक्ति वापस हमारी मज़ाक उड़ाने का अवसर ढूँढने लग जाता है ।
मुझे याद है सम्राट अकबर के मन में एक बार बीरबल की मजाक उड़ाने की सूझी और उन्होंने राजसभा में आते ही बीरबल से कहा, 'बीरबल ! आज मैंने एक सपना देखा। मैंने देखा कि हम दोनों साथ-साथ जंगल में चल रहे थे। रास्ता भटक गए, रात जंगल में ही गुजारनी पड़ी और अंधेरे में जब हम रात को थोड़े चले तो मैंने देखा कि हम दो गड्ढों में गिर गए। मैं अमृत के गड्ढे में गिरा और तुम कीचड़ के गड्ढे में । और जैसे ही हम दोनों गड्ढे में गिरे, मेरा सपना टूट गया।' अकबर का इतना कहना था कि सभासदों ने जोरदार तालियाँ बजाई
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