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________________ वैसा ही है। फ़र्क आपकी नज़रों का है कि आप उसे कैसे देखते हो। नज़ारा वैसा बनता है जैसी हमारी नजरें होती हैं । इसलिए नज़रों को न बिगाड़ें। किसी को देखकर, किसी के साथ रहकर, किसी के साथ जीकर, किसी के साथ अपने आपको जोड़कर व्यक्ति अपनी नज़रों को हमेशा निर्मल बनाने की कोशिश करे। कहना भी हो तो अकेले में कह दें ताकि आलोचना न हो और उसे सुधरने का अवसर मिल सके। -- कहते हैं बीरबल ने अकबर का बहुत सुंदर चित्र बनाया और अकबर को भेंट कर दिया। अकबर ने अपने अन्य प्रिय सभासदों को वह चित्र दिखाया और कहा - देखो, इसमें कुछ कमी है क्या ? एक ने वह चित्र देखा और एक गोल बिंदी बनाई कि इसमें यहाँ कमी है, दूसरे ने भी कहीं कमी बताई, तीसरे ने कहीं और गोला बनाया कि यहाँ कमी है और दरबार के उन आठों रत्नों ने आठ जगहों पर निशान लगाए कि यहाँ यहाँ कमी है। बीरबल सारी बातें चुपचाप सुनता रहा। जब जहाँपनाह ने वह चित्र बीरबल को वापस दिया और कहा, 'देखो इन लोगों ने इस चित्र में यहाँ यहाँ कमी दिखाई है।' बीरबल ने कहा, 'जहाँपनाह इस चित्र को तो छोड़िये । मैं अपने साथ आठ कोरे कागज़ लाया हूँ और आप ये कागज़ इन्हें दे दीजिए और कहिये कि ये सभी एक-एक चित्र बनाएँ । तब पता लगेगा कि चित्र बनाना क्या होता है और चित्र में कमी निकालना क्या होता है।' व्यक्ति चित्र तो नहीं बना सकता लेकिन चित्र में कमियाँ निकाल सकता है। कृपया अपनी इस आदत को सुधारिये। न तो अज्ञानतावश और न ही ईर्ष्यावश, किसी की आलोचना मत कीजिये । मुस्कुराएँ जी भरकर व्यवहार को प्रभावी बनाने की अगली सीढ़ी है सदा मुस्कुराते रहें और अपने हृदय में दयालुता के भाव अवश्य रखें । मुस्कान का आदान-प्रदान जीवन की मुस्कान का राज है। जीवन की मधुरिमा मुस्कान में छिपी है। सुबह उठकर सबसे पहला काम करें एक मिनट तक तबीयत से जी भरकर मुस्कुराएँ । जो मुस्कान में जीता है और अपनी ओर से मुस्कान बाँटता है, उसका जीवन परमात्मा का पुरस्कार बन जाता है। हाँ, कभी भी किसी घटना को मानसिक तनाव न बनाएँ। जो होना था सो हुआ। होनी को टाला नहीं जा सकता, अनहोनी को किया नहीं जा सकता। फिर व्यर्थ की चिन्ता क्यों पालें । फिर हम अपने स्वभाव को क्यों चिड़चिड़ा बनाएं, क्यों हर समय बिसूरते रहें ? मुस्कुराते रहें और सोचें कि जो मिला है सो अच्छा मिला है। जीवन में होने वाले हर अनुकूल प्रतिकूल वातावरण को प्रेम से स्वीकार करें । सदैव स्वीकार करें जो होता है सो अच्छे के लिए होता है। अगर यह भी न स्वीकारें तो यह तो जीवन का सच है कि वही होता है जो होना होता है । कहें तो सुनें भी अगला क़दम है : दूसरों के व्यवहार का हमेशा सही अर्थ लगाएँ। किसी ने आपसे कोई बात कही है तो उसे सही अर्थों में ग्रहण करें। माना कि आपने किसी को फोन किया और वह नहीं मिला तो आपने संदेश दिया कि जब आएँ तब बात करा देना और किसी कारणवश वापस फोन नहीं आया तो आप रुष्ट हो गए कि उसने वापस फोन क्यों नहीं किया। नाराज़ न हों। संभव है सामने वाले ने फोन किया हो और न मिला हो। हो सकता है कि आपने जो नंबर दिये वह बच्चे ने ग़लत लिख लिया हो या हो सकता है कि सामने वाला व्यस्त रहा हो और यह भी हो सकता है कि Jain Education International 145 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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