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________________ तेजस्वी होता जाता है, जिसके पास जीवन का सौन्दर्य है, उसे कभी शरीर का सौन्दर्य नहीं लुभाता । जीवन ही हर व्यवस्था में स्वयं को अनुकूल करने का प्रयास करें और अपने बच्चों में भी यह संस्कार अवश्य डालें कि जीवन में चाहे जो भी दुविधाएँ आएं वे उन्हें जीने और भोगने में समर्थ हो सकें। अन्यथा आज की सुविधाओं को तो वे आराम से भोग लेंगे लेकिन दुविधा आने पर रोने-धोने के अलावा कुछ न कर सकेंगे। अपनी संतान को इस बात का अहसास कराते रहें कि हर हरी घास एक दिन सूख जाती है, अतः उसका प्रेमपूर्वक मुकाबला करने के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिये । काया नहीं, हृदय संवारें जीवन का दूसरा मंत्र है- ' अपने शरीर पर अधिक ध्यान न दें।' शरीर जीवन जीने का, जीने की व्यवस्थाओं को सम्पादित करने का साधन मात्र है। बार-बार आईने में न देखें कि चेहरे पर यहाँ कैसा दाग़ है या यह सांवला क्यों? शरीर के प्रति अधिक अनुरक्ति न रखें। अगर हर समय शरीर का ही ध्यान रहेगा तो छोटी-छोटी तकलीफों को सहन कैसे कर पाएँगे? रोज-रोज यह क्या कि सिर दुख रहा है या पेट दर्द हो रहा है । छोटी-छोटी तकलीफों को जीने की कोशिश करें। अगर हाथ में फोड़ा हो गया है तो तटस्थता अनुभव करें कि 'मैं' अलग हूँ और शरीर अलग है। जो इस बोध के साथ जीता है उसके जीवन में चाहे जितने उपद्रव आएँ, लेकिन वे उसे सता न सकेंगे। वरना एक छोटे-से फोड़े में आह ऊह - ओह दिनभर चलती रहेगी। शरीर के रंग का भी क्या देखना ! अगर देख सकते हो तो हृदय की सुंदरता देखो। मैं देखा करता हूँ कि कुछ लड़के कुंवारे रह जाते हैं क्योंकि उन्हें बहुत सुंदर पत्नी चाहिए। चेहरे की सुंदरता का कैसा मोह? यह सुंदरता कब ढल जाएगी पता भी नहीं चलेगा। अगर बना सको तो अपने हृदय को जरूर सुंदर बनाओ। जो मिला है, उसे सहजता से स्वीकार करें और अपने शरीर पर ज्यादा ध्यान देने की कोशिश न करें। मैं देखा करता हूँ कि लोग स्वयं के शरीर को सजाने-संवारने में घंटों खर्च कर देते हैं। मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जो रोज तैयार होने में दो घंटे लगाते हैं लेकिन वे मंदिर जाते होंगे तो बैठ पाते होंगे। देह के प्रति कितनी अनुरक्ति है उन्हें ! मिनट ही वहाँ शरीर का मोह छोड़िए अगर आपके शरीर पर कोई दाग हो गया है और अगर आप उसी का चिंतन करते रहे तो जीवन भर दुखी रहेंगे, पर यदि यह सोचेंगे कि ठीक है शरीर पर दाग है, मुझ पर नहीं, तो सुखी होंगे। शरीर से अनासक्ति रखें। आज जवानी है, कल बचपन था, परसों बुढ़ापा आएगा और फिर कहानी खत्म! सूरज की तरह जीवन है कि रात होते ही जीवन भी समाप्त हो जाता है । रोज सुबह और सांझ के रूप में जन्म और मृत्यु हमारे द्वार पर दस्तक दे रहे हैं आप नहीं बता सकते कि किस दिन से आपके बाल सफेद होने शुरू हुए या किस तारीख को आपके बाल उड़ गए ? दिन प्रतिदिन शरीर ढलता जा रहा है और काले बाल सफेदी की ओर बढ़ रहे हैं । Jain Education International 13 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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