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शुरू हो जाती है। जो अकड़ कर रहती है वह कच्ची कैरी और जो झुक जाय वह पका हुआ आम ।
जीवन में महानताएँ श्रेष्ठ आचरण से मिलती हैं - वस्त्र - आभूषण और पहनावे से नहीं । इसलिए जीवन को सादगीपूर्ण ढंग से जिएँ । सादगी से बढ़कर जीवन का अन्य कोई शृंगार नहीं है। ईश्वर को जो शारीरिक सौन्दर्य देना था, वह तो उसने दे दिया । उसे और भी अधिक सुंदर बनाने के लिए 'उच्च विचार और सादा जीवन' अपनाएँ, न कि कृत्रिम सौन्दर्य-प्रसाधन ।
क्या आप नहीं जानते कि जिन कृत्रिम सौंदर्य-प्रसाधनों का उपयोग आप कर रहे हैं वे हिंसात्मक रूप से तैयार किए गए हैं ? क्या आपने यह जानने की कोशिश की है कि आपकी शृंगार सामग्री के निर्माण में कितने पशुओं का करुण क्रंदन छिपा हुआ है ? क्या लिपिस्टिक लगाने वाली किसी भी महिला ने यह जानने की कोशिश की कि लिपिस्टिक में क्या है ? आखिर चौबीस घंटे तो बन-ठनकर नहीं जीया जा सकता। क्यों न हर समय सहज रूप में रहें ताकि हमारा सहज सौन्दर्य भी उभर सके । सादगी से बढ़कर सौन्दर्य क्या ? राष्ट्रपति कलाम साहब जब राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित हुए तो समाचार-पत्रों में उनके चित्र आने लगे कि अगर वे अपने बाल चित्रों में बताए गए तरीके से कटवा लेंगे या संवारने लगेंगे तो अधिक खूबसूरत लगेंगे, या कहा गया कि वे अपनी वेशभूषा में कुछ परिवर्तन कर लेंगे तो अधिक प्रभावशाली लगेंगे। लेकिन मैं सोचा करता कि अगर यह व्यक्ति काबिल है तो राष्ट्रपति बनने के बाद भी ऐसा ही रहेगा और मैं प्रशंसा करूँगा कलाम साहब की कि वे आज भी देश के साधारण व्यक्ति के समान ही जी रहे हैं । यही उनका शृंगार है- 'सादा जीवन, उच्च-विचार' । सादगी से बढ़कर और कोई श्रृंगार नहीं होता ।
अंत: सौंदर्य की सुवास
वस्त्रों और आभूषणों से जीवन में कृत्रिम सुंदरता पाने की बजाय आप उत्तम विचार और आचार से जीवन के वास्तविक सौन्दर्य के मालिक बनें। आपके पहनावे का भड़कीलापन कुछ मनचलों को आपकी ओर आकर्षित कर सकता है, पर आपकी सादगी और जीवन की श्रेष्ठता किसी महान व्यक्ति को भी आपकी ओर आकर्षित कर सकती है । वस्तुओं को बटोरना तो सामान्य बात है, लेकिन बटोरी हुई वस्तुओं का त्याग करना जीवन की महानता है। वैभव की व्यवस्था केवल आपके ही पास नहीं है । महावीर और बुद्ध भी ऐसे ही सम्पन्न थे, लेकिन उन्होंने देखा कि बाहर का वैभव आंतरिक वैभव के समक्ष फीका है। महावीर निर्वस्त्र रहते थे तब भी लोग उनके पास जाया करते थे, क्योंकि उनके पास आंतरिक सौंदर्य की सुवास थी और यही उनका श्रृंगार था । जो अपने जीवन को सादगीपूर्वक उच्च विचारों के साथ जीते हैं, वे कितने भी बूढ़े क्यों न हो जाएं, कुरूप नहीं हो सकते। आपने महात्मा गांधी के युवावस्था और बुढ़ापे के चित्र देखे होंगे। मेरी नज़र में उनका बुढ़ापे में चेहरा अधिक सुंदर हो गया था। श्री अरविंद के बुढ़ापे के चित्रों में भी कितना सौंदर्य छलक रहा है ! रवीन्द्रनाथ टैगोर का सौंदर्य भी वृद्धावस्था में निखर आया था। जैसे-जैसे हमारे विचार निर्मल होते हैं, व्यवहार पवित्र होता है हमारा चेहरा भी उतना ही
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