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________________ की मोहासक्ति और व्यर्थ की लोभ की प्रवृत्ति त्याग दें। व्यवस्थित जिएँ, ताकि बुढ़ापा आप पर प्रभाव न डाल सके। एक प्यारी घटना बताता हूँ। हम नाकोड़ा में थे, जोधपुर से एक वृद्ध दम्पति दर्शनार्थ वहाँ आए हुए थे। वे हमसे भी मिले। थोड़ी कंजूस प्रकृति के थे। मैंने कहा, भोजन कर लीजिए। पत्नी कहने लगी, तीर्थ में आए हैं तो धर्म की रोटी नहीं खाएँगे, टोकन से ही खाएँगे। मैंने कहा जैसी आपकी मर्जी, आप लोग खाना खाकर आ जाएँ। उनका विचार था कि भोजनशाला में जाएँगे तो दो थाली के पैसे लग जाएंगे। एक थाली यहीं मंगा लेता हूँ। दोनों एक ही थाली में खा लेंगे। मैंने कहा - ठीक है, यहीं व्यवस्था करा देता हूँ। मैंने एक व्यक्ति को भेजा और खाना मंगवा दिया और कहा कि पास में जो कमरा है उसमें बैठकर भोजन कर लीजिए। पति खाना खा रहा था और पत्नी यूं ही बैठी थी। मैंने कहा सर्दी का मौसम है, खाना ठंडा हो जाएगा। आप साथ में ही खा लीजिए। कहने लगी-नहीं, ये खा लें फिर मैं खा लूंगी। मैंने तीन बार कहा, पर नहीं मानीं । कहने लगी-बात कुछ और है। मैंने पूछा, क्या मतलब? बताया-ये खाकर खड़े होंगे तो मैं खाऊंगी, क्योंकि हम दोनों के बीच हमारी बत्तीसी एक ही है। ऐसी कंजूसी भी किस काम का? दूसरा रत्न-स्वयं को स्वस्थ महसूस करें और सक्रिय रहें । आप दीर्घजीवी के साथ स्वस्थ जीवी हों। आप जब तक सक्रिय रहेंगे, बुढ़ापा आपसे दूर रहेगा। अगर जवानी में भी निष्क्रिय हो गये तो गये काम से। बुढ़ापा रोकने के लिए - सदा गतिशील रहें। जहाँ तक संभव हो अपने कार्यों के लिए औरों पर आश्रित होने की बजाय अपने कार्यों को स्वयं सम्पादित करने का प्रयास करें। इससे आप स्वावलम्बी भी रहेंगे और सक्रिय भी।शरीर का जितना उपयोग करें यह उतना ही चार्ज होता जाएगा। घर के छोटे-मोटे कार्यों में हिस्सा बंटाते रहें। इससे आप थोड़े व्यस्त रहेंगे और ज़िंदगी में खालीपन नहीं लगेगा।आप सदैव चैतन्य शक्ति से भरपूर रहें। शारीरिक शक्ति के कमजोर पड़ने पर भी प्राणशक्ति को कभी भी कमज़ोर न हो दें। बुढ़ापे में आर्थिक, शारीरिक और पारिवारिक समस्याएं बढ़ सकती हैं, पर आप अपने मनोबल से इनसे पार लग सकते हैं। तीसरा रत्न-घर में निर्लिप्त भाव से रहें। निर्लिप्तता शांति और मुक्ति देती है। ध्यान रखें, अपनी संतानों में जब धन का बंटवारा करें तो एक हिस्सा अपने और पत्नी के लिए अवश्य रखें, साथ ही यह भी व्यवस्था दें कि आपकी मृत्यु के बाद आपके हिस्से का धन पुनः संतानों में बंटने की बजाय उस धन का मानवता के कल्याण के लिए खर्च हो ताकि आप मानवता के कर्ज से उबर सकें। नहीं तो परिवार के लोगों की जीते जी भी तुम्हारे धन पर ही नज़र होगी और मरने पर भी। अगर आपके संतान नहीं है तो धन-सम्पति में आसक्त होने की बजाय निष्पृहभाव से उसका सामाजिक हितों में उपयोग करें। चौथा रत्न - प्रतिदिन सुबह-शाम भगवान की भक्ति अवश्य करें। अनावश्यक इधर-उधर की बातें करने की बजाय प्रभु की प्रार्थना या आराधना कर लें। बुढ़ापे में भगवान की भक्ति मन की शांति का आधार बनेगी। पाँचवां रत्न - प्रतिदिन आधा घंटा अच्छी पुस्तक अवश्य पढ़ें ताकि मति संमति रहे, आपके मन की गति सद्गतिमय रहे। - 134 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003861
Book TitleJine ki Kala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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