________________
जिन्दगी आदमी की इसी सुषुप्तावस्था में व्यतीत हो जाती है। कभी चिंतन करोगे तो पता चलेगा कि साठ साल की जिन्दगी सोये-सोये ही पूरी कर दी। कभी खुली आंखों से तो कभी बंद आंखों से सपना देखा। व्यक्ति निरंतर सपनों में सोया है। आखिर सारा संसार सपना ही तो है, भले ही हम उसे खुली आंखों का सपना कह दें। ___कोई व्यक्ति सोया हुआ है और आप उसे जगाते हैं तो उसे बुरा लगता है। यह दुनिया का रिवाज है कि कोई किसी को जगाए तो उसे बुरा लगता है। इसी तरह आप किसी की बुराइयों को उसे बताएँगे तो वह आपके गले पड़ जाएगा। यदि यह घोषणा की जाए कि कल यहाँ सत्य कैसे बोला जाए', इस पर भाषण होगा तो पचास लोग भी नहीं जुटेंगे। इसके विपरीत अगर यह विज्ञापन अखबारों में दिया जाए कि 'यहाँ झूठ बोलने की कला सिखाई जाएगी' तो हजारों लोग आ जाएँगे। जीवन के कल्याण से सम्बन्धित बात सुनने की किसे पड़ी है?
संसार का रवैया ही ऐसा है। कोई व्यक्ति लोगों का जीवन सुधारना चाहता है तो उसके कानों मे कीलें ठोकी जाती हैं, उसे सलीब पर चढ़ाया जाता है । ईसा मसीह ने भी यही तो किया, जिसकी सजा उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। गांधी को इसीलिए गोली लगी। सुकरात को जहर का प्याला पीना पड़ा। आज जिस ईसा मसीह की इबादत की जाती है, उसे लोगों ने जीते जी सूली पर चढ़ा दिया था। जिस महावीर को आज हम पुष्पचंदन चढ़ाते हैं, जब वे जीवित थे तो लोगों ने उनके कानों में कीलें ठोकी थीं। इस दुनिया का स्वभाव ही ऐसा है कि वह अतीत को गौरवपूर्ण बताते हुए उसकी पूजा करती है और वर्तमान का बहिष्कार करती है। व्यक्ति जीते जी इंसान को भगवान के रूप में स्वीकार नहीं कर सकता। आज अगर महावीर पैदा हो जाएँ तो लोग फिर कीलें ठोक दें। जब-जब भी कोई महापुरुष इस सोई हुई दुनिया को जगाने का प्रयास करेगा, तो यह दुनिया उसकी आलोचना करेगी, उसे पत्थर मारेगी। दुनिया को तो बेहोशी और नींद पसंद है। उसे जगाना अच्छा नहीं लगता।
पतंजलि ने योगसूत्र में तीन बातें कहीं- जाग्रति, सुषुप्ति और स्वप्नावस्था। हम धीरे-धीरे जाग्रति में आएँ। अभी तो हम सुषुप्तावस्था में हैं। उससे ऊपर उठकर जाग्रतावस्था की ओर चलें। अपने आप को ऊपर उठाएँ
और आत्म चेतना की ओर लौटें । जो व्यक्ति जागेगा सो पाएगा। सोया रहने वाला व्यक्ति सिवाय पछताने के और कुछ न कर सकेगा। ___मैं आपसे आह्वान करता हूँ कि निद्रा से जागिये और आगे बढ़ने की राह पर कदम बढ़ाइये। यदि सोते रहे तो पछताते रह जाओगे। आप जगें और देह के प्रति मूर्छा तोड़ें। देह के प्रति आसक्ति को समाप्त करें। आत्मचेतना में लौटने की कोशिश करें। जो स्वयं में लौट आया, वह स्वयं को उपलब्ध हो गया। इसलिए प्रभु कहते हैं- 'अप्पा सो परमप्पा' अर्थात् जो आत्मा है, वही परम आत्मा है। आत्मा की विराट 3
71 For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org