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________________ समाहित है । राबिया एक विदुषी महिला हुई है। एक बार वह अपनी कुटिया के बाहर कुछ ढूँढ रही थी। उधर से कुछ संत गुजरे । उन्होंने राबिया को कुछ ढूँढते देखा तो पूछा कि 'क्या ढूँढ रही हो ?' राबिया ने कहा, 'सूई खो गई है, उसे ढूँढ रही हूँ।' उन संतों ने भी सुई ढूंढना शुरू कर दिया। काफी देर बाद भी जब सुई नहीं मिली तो संतों ने पूछा कि ' सूई खोई कहाँ थी ?' रोबिया ने कहा, 'सुई तो कुटिया के भीतर खोई थी ।' संत अचंभित रह गए। वे बोले, 'राबिया, हम तो तुम्हें विदुषी समझते थे, पर तुम तो यह भी नहीं जानती कि जो सुई कुटिया के भीतर खोई है, वह कुटिया के बाहर कैसे मिल सकती है ?' राबिया ने कहा, 'तुम लोग भी तो जिस ज्ञान की खोज में जंगल में जा रहे हो, इधर-उधर भटक हो वह तो तुम्हारे भीतर ही है। उसे वहाँ क्यों नहीं ढूंढते ? संतों की आँखें खुल गईं। राबिया वाकई कितनी महान थी। दूसरों को उपदेश देने का उसका तरीका भी कमाल का था। जो चीज जहाँ खोई है, वहीं मिलेगी। उसे अन्यत्र ढूँढ़ना मृगतृष्णा ही है । हम राबिया के इस संदेश को जीवन में उतारें। अन्यथा सुई तो भीतर पड़ी है और हम उसे बाहर ही ढूँढते रह जाएँगे । जो आदमी ऊपर ही तैरता रहेगा, उसके हाथ कभी मोती नहीं लगेंगे। 'जिन खोजा तिन पाइयां, गहरे पानी पैठ ।' जो जितनी गहराई तक उतरेगा, मोती मिलने के अवसर उतने ही अधिक हो जाएँगे। भीतर अंधकार जरूर है लेकिन साधक की दृढ़ इच्छा-शक्ति वहाँ रोशनी पैदा कर देगी। आदमी दिखावे भर के लिए बाहरी क्रियाकलाप तो करता जाता है, मगर भीतर की उसे सुध नहीं रहती । अपने आपको पहले डूबने के योग्य बनाओ, तभी गहराई तक पहुँच सकोगे और मोती तुम्हारे हाथ आ सकेंगे। जब तक यह नहीं होगा, आपका जड़ के प्रति राग बना रहेगा और भीतर के आत्मचेतनतत्त्व में जाग्रति नहीं हो पाएगी। उस पर धूल जमती जाएगी। व्यक्ति का देह के प्रति राग रहेगा तो मामूली सिरदर्द भी उसे परेशान कर देगा और यदि वह उससे ऊपर उठ गया तो कैंसर भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। वह आत्म- चेतना में लीन हो जाएगा। देह की व्याधि उसकी अन्तर- चेतना में समाधि का निमित्त बन जायेगी। जहाँ-जहाँ व्यक्ति की देह से आसक्ति रहेगी, वहाँ-वहाँ उसे सिवाय भटकाव के और कुछ भी न मिलेगा। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप देह से ऊपर उठें। देह के प्रति आसक्ति को छोड़ें। देह के प्रति सूक्ष्म से सूक्ष्म राग के जितने निमित्त हैं, उनसे मुक्त होने का प्रयास करें। आप अपने भीतर लौटने का प्रयत्न करें, मंजिल आपका स्वागत करेगी। भीतर लौटोगे तो अंधेरे से प्रकाश की यात्रा शुरू होगी और उसकी समाप्ति परमात्मा से मिलन में होगी। एक बात मैं और कहना चाहूँगा कि भीतर के अंधेरे से कभी घबराना मत। निश्चित रूप से बाहर की आँखें बन्द करने पर भीतर अन्धेरा ही दिखाई देगा और तुम घबराओगे। लेकिन एक बात का हमेशा ध्यान रखना कि बाहर कितना भी उजाला हो, तुम्हारी आँखें मुँदते ही तुम्हारे लिए वहाँ अंधेरा छा जायेगा। पर अगर तुम्हें भीतर का प्रकाश उपलब्ध हो गया तो चाहे आँखें बंद रहें या खुली, उसकी ज्योतिर्मयता तो कायम रहेगी ही । कल एक महानुभाव कह रहे थे । 'आँख बंद करके ध्यान करने बैठता हूँ तो भीतर गहरा अँधेरा दिखता है । Jain Education International 69 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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