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डाला गया है। दिखने में ये सीधे-सादे नौ प्रवचन हैं, पर इनकी गहराई हर व्यक्ति को सीधे अपने अन्तर्मन में उतारती है। लेखक को नौ का अंक रास आया होगा। यह अखंड अंक माना जाता है। प्रभु करे, उनकी यह कृति भीतर-बाहर विभाजित हो रही मानवता को अखंडता और अन्त्र-सम्बद्धता का पावन संदेश प्रदान करे।
महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी विद्वान एवं प्रतिभावान् संतप्रवर हैं। सौहार्द और सौजन्य की प्रतिमूर्ति तो हैं ही, प्रवचन-क्षेत्र में भी उनकी पेठ बेहद प्रशंसनीय है। प्रस्तुत पुस्तक में महोपाध्यायश्री के जिन नौ प्रवचनों को संकलित किया गया है वे हजारों लोगों की उपस्थिति में दिये गये उनके अमृत वक्तव्य हैं । यह वह अवदान है, जो भावी पीढ़ी का भी मार्ग प्रशस्त करता रहेगा । पुस्तक मानव-मन को प्रबुद्ध और प्रशस्त करने में सहकारी होगी, यह विश्वास है।
-श्री चन्द्रप्रभ
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