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________________ की थी। जिन्होंने अहंकार का विसर्जन नहीं किया, 'मैं' भाव से मुक्त नहीं हुए वे ऐसी नाव हैं जिसकी जंजीर तट से बँधी है, अब उस नाव में बैठकर जिंदगी भर तक पतवारें चलाते रहो, यात्रा नहीं होगी। जीवन भर धर्म के नाम पर कर तो बहुत कुछ लेते हो, पर जीवन में, व्यवहार में रूपांतरण की चमक नहीं आ पाती है। जैसे एक नेता को अपनी सत्ता का अहंकार होता है, सम्पन्न व्यक्ति को धन का अहंकार होता है, वैसे ही कहीं ऐसा तो नहीं है कि हमें भी धर्म का, धार्मिक होने का, कहीं कोई अहंकार अनुभव हो रहा हो। ___ कल तक तुम पाप कर रहे थे, गलत धंधे कर रहे थे। तब तुमने किसी को नहीं कहा कि मैं पाप कर रहा हूँ, लेकिन आज थोड़ा-सा पुण्य करना प्रारम्भ किया, तो अखबारों में छपवाने की ललक पैदा हो गयी, रंगीन पत्रिकाएँ छपवाने की प्यास जग गयी।सारे देश में तुम यही फैलाना चाहते हो कि तुमने तीस उपवास किये हैं या एक लाख का दान दिया है। और यह भावना ही व्यक्ति में अहंकार का बीजारोपण करती है। परिणाम यह होता है कि व्यक्ति दान देने के लिए दान नहीं देता या तपस्या करने के लिए तपस्या नहीं करता है। वह दान देता है अपनी अहं-तुष्टि के लिए, तपस्या करता है अपने अहंकार के पोषण के लिए। आदमी एक दिन मंदिर में जाकर प्रार्थना कर आता है, तो अपने आपको धार्मिक घोषित कर देता है। अध्यात्म के क्षेत्र में जो व्यक्ति अपने धार्मिक होने का मीठा अहंकार पाल लेता है, वह ऊँची उड़ान भरने वाला व्यक्ति अपने ही हाथों स्वयं को गड्ढे में गिरा देता है। __ मैंने सुना है, एक मुसलमान व्यक्ति काफी धार्मिक था। पाँचों समय नमाज अदा करे, लेकिन फिर भी कहीं कोई अहंकार का भाव नहीं। पर उसे इस बात का गहरा दुःख था कि उसका बेटा न तो कभी नमाज अदा करता है और न कभी मस्जिद का मुंह तक देखता है। बेटा एक नम्बर का नास्तिक था। पिता समझा कर हार गया, पर बेटा कभी नमाज अदा करने मस्जिद न गया। आखिर एक दिन पिता ने कुछ ज्यादा ही आग्रह किया, तो बेटे ने कहा, 'ठीक है, कल सुबह पाँच बजे वाली नमाज में मैं आपके साथ चलूँगा।' सुबह जैसे-तैसे पिता ने उसे नींद से उठाया और पिता-पुत्र नमाज अदा करने मस्जिद गये। जब वे मस्जिद से वापस आ रहे थे तो गर्मी का मौसम था और लोग घरों के बाहर ही सो रहे थे। पुत्र ने देखा, सोये हुए उन लोगों को। उसने पिता से कहा, 'पिताजी, ये लोग कितने अधार्मिक हैं ! छह बजने को आए हैं, पर अभी भी खटिया नहीं छूट रही है। ओह ! इनका भला कैसे होगा?' पिता तो आश्चर्यचकित हो गया। एक दिन की नमाज अदा की जिसमें इतना अहंकार। अरे, कल तक तुम आठ बजे तक सोये पड़े रहते थे, तब तुम्हें नहीं लगा कि मैं अधार्मिक हूँ। तुमने एक समय की नमाज अदा कर ली तो तुम्हें धार्मिक होने का अहंकार हो गया। कितना अच्छा होता यदि आज भी तुम नहीं आते तो कम से कम धार्मिक होने का अहंभाव तो न जगता। हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही है। धार्मिक होने का एक पवित्र अहंकार हम साथ में ढो रहे हैं! अभी कुछ दिन पूर्व मेरे हाथ में एक धार्मिक पुस्तक आयी। मैंने देखा, जिस व्यक्ति ने दान देकर वह पुस्तक छपवायी, उसका जीवन-चरित्र पुस्तक में प्रकाशित था और उस जीवन-चरित्र में उसके धार्मिक कृत्यों की पूरी सूची थी। Jain Education International 50 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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