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________________ भिखारी ने माथा पीट लिया। अरे, जिस नगर में राजा ही भिखारी हो, वहाँ भिखारी को भला क्या भीख मिलेगी? उसने राजा की अनुनय-विनय पर ध्यान दिया और झोली में से बड़े कांपते हाथों से चावल का एक दाना निकाला तथा राजा को दे दिया। राजा ने भिखारी का शुक्रिया अदा किया और राजमहल की ओर लौट गया। इधर वह भिखारी अपनी झोंपड़ी में पहुँचा तो उसकी पत्नी ने पूछा कि आज क्या लाए ?' भिखारी ने पूरी कथा सुना दी। उसकी पत्नी ने कहा कि 'क्या हुआ जो एक दाना चला गया?' वह झोली लेकर चावल थाली में निकालने लगी तो उसकी आँखें आश्चर्य से भर गईं। उसने देखा कि चावलों में एक दाना सोने का हो गया था। उसने अपने भिखारी पति को वह दाना बताया और कहा कि 'तुरंत जाओ और राजा को और भी चावल दे आओ। हमारे सभी चावल सोने के हो जाएँगे।' भिखारी ने ठंडी सांस भरकर कहा-'अब कुछ नहीं हो सकता। मैं चूक गया। वह पल अब वापस नहीं आने वाला । अब तो सारे चावल दे आऊँ तो भी कुछ न होगा। राजा का वह मुहूर्त चला गया। अब ऐसा पल नहीं आएगा कि राजा भीख मांगे।' ___हम अपने जीवन में ऐसी ही चूक कर रहे हैं। बाद में जब आँख खुलती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। गंगा तो हमारे द्वार तक आती है, मगर हम उसमें डुबकी लगाने से चूक जाते हैं । ये चूकने की नौबत न आए, इसके लिए किसी काम को कल पर न टालें। वर्तमान का उपयोग करना सीखें। अतीत की स्मृतियों से पीछा छुड़ाएँ और भविष्य के सपने न देखें। अपना वर्तमान भरपूरता के साथ जियें। मनुष्य वर्तमान में जीना सीख ले, तो मन की तरंगें भी समाप्त होने लगेंगी। महावीर कहते हैं, 'जो अतीत और भविष्य की जंजीरों से वर्तमान में लौट आया है, वही दृष्टा-भाव में जी रहा है।' ऐसा आदमी ही जीवन का सच्चा आनन्द ले सकता है। आइये, हम इस आनन्द को प्राप्त करने की दिशा में कदम बढ़ायें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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