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________________ पढ़ें, मन का चरित्र तीन फकीर गंगा किनारे बैठे साधना कर रहे थे। उन्हें साधना करते कई वर्ष बीत गए । एक दिन लोगों ने देखा कि तीनों फकीर धीरे-धीरे जमीन से ऊपर उठने लगे। वे करीब दस फीट तक ऊँचे उठे और अधर में स्थिर हो गए। नगर में शीघ्र ही चर्चा फैल गई कि तीन फकीर अधर में लटक कर तपस्या कर रहे हैं। लोगों ने वहाँ आकर उन्हें प्रणाम करना शुरू कर दिया। __ऐसे ही कई दिन बीत गए । एक दिन एक फकीर ने आंख खोली तो उसकी नजर नीचे पड़ी। उसने देखा कि किसी बगुले ने अपनी चोंच में एक मछली को पकड़ रखा था। उस फकीर के मुँह से निकला 'मुंच' यानी छोड़ दे। इतना कहने की देर थी कि वह फकीर जो अधर में था, नीचे आ गिरा। दूसरे फकीर ने यह घटना देखी तो बोल उठा- 'मा मुंच' यानी मत छोड़ो। इसके साथ ही वह भी नीचे आ गिरा। तीसरे फकीर ने भी यह घटनाक्रम देखा, मगर दोनों फकीरों की हालात देखकर उसे बोध हुआ कि साक्षी भाव में जीना ही ठीक है। उसने किसी प्रकार की प्रतिक्रिया न करते हुए आँख बंद की और पुनः साधना में लीन हो गया और वह फकीर अधर में ही रहा। इस कहानी की सीधी-सी ध्वनि यह निकलती है कि साक्षी भाव में जीने से ही आदमी मोक्ष की राह में कदम बढ़ा सकता है। बंधन तो आखिर बंधन ही होता है, भले ही वह शुभ का हो या अशुभ का। चिंतन भी ऐसा ही होता है। साधना के मार्ग में तो आदमी को निर्विकार और निर्विचार होना पड़ता है। कोई व्यक्ति भले ही लोहे की साँकल से बंधा हो या सोने की सांकल से, उसे बंधन ही कहा जाएगा। धातु बदलने से बंधन की पीड़ा नहीं 38 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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