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________________ जो इच्छाओं का दास बना है। ___ जीवन का घट पल-पल खाली हो रहा है और इच्छाएँ पुरजोर बढ़ी जा रही हैं। क्या जीवन का अन्त होने से पहले हम अपनी इच्छाओं का अंत कर पायेंगे? अब कितनी-सी जिन्दगी शेष रह गई है ? अब तो झूठ न बोलें। यह हरा पत्ता तो कभी का पीला पड़ चुका है। बस, इसे पेड़ से टूट कर नीचे गिरना ही शेष है। और एक दिन तो यह नीचे गिरेगा ही। जब भी गलत कदम उठाओ तो विचार करो कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूँ ? । हम अपने जीवन को सार्थक बनाएँ। उपलब्धियों को तलाशें। जिन्दगी में निकल रहे धुएँ को आग में बदलें। ज्योति जलाएँ। जीवन की लकड़ी पल-पल सुलग रही है। जीवन को पाना खास बात नहीं है, उसे सँभाल कर रखना महत्वपूर्ण है। लोभ का धुआँ समाप्त करें। ऐसी फूंक मारें कि धुआँ खत्म हो जाए और आग लगी रह जाए। यही जीवन की भव्यता होगी, दिव्यता होगी, उपलब्धि होगी। एक ऐसी ज्योति जिसमें धुआं नहीं होगा। वासना के धुएँ और धुंध के छंट जाने का नाम ही निर्वाण है। हम सबको इसी की अपेक्षा है। 37 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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