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________________ मच्छो : क्यों न गई मन से? गीता में भगवान ने संदेश दिया है—'मूर्छा तोड़ो, समर्पित भाव से कर्म करो, अनासक्तिपूर्वक जीओ।' गीता का यह संदेश मनुष्य के लिए वरदान है। धर्म और अध्यात्म का यह बड़ा व्यावहारिक रूप है। मूर्छा का टूटना ही सांसारिक व्यामोह और आसक्ति से मुक्ति है। समर्पित भाव से कर्म करना हमारी कर्मठता और भक्ति है। तीसरे चरण में मैंने जो बात कही है कि अनासक्तिपूर्वक जीओ, वह इसलिए कि जीवन और कर्त्तव्य के प्रति होश और जागरूकता बनी रहे । फल की इच्छा के हम मोहताज न हों। कर्म हमारा पौरुष है और गीता तो कहती है—'कर्मण्यैवाधिकारस्ते'-कर्म ही तुम्हारा अधिकार है। हर व्यक्ति की यह मंशा रहती है कि वह जो कर्म कर रहा है, उसका उसे पूरा फल मिले। तुम कर्म जितना फल चाहो, वहाँ तक तो ठीक है, पर कर्म और पुरुषार्थ तो करते हैं लॉटरी की टिकट खरीदने का, दो-पाँच रुपये का और फल चाहते हैं अपने नाम लॉटरी खुल जाने का, लाखों-करोड़ों का। जब लॉटरी अपने नाम नहीं खुलती है, तो भगवान को कोसने लगते हैं । यह वास्तव में भक्ति नहीं है। यह तो हमारी मूढ़ता और अंधता है। ___मूर्छा टूटे, बेहोशी मिटे, हम में कुछ समझ विकसित हो, कुछ जागरूकता आये, यह जरूरी है। हमें जीवन के प्रति जागरूक होना चाहिये। जीवन सोये-सोये जीने के लिए नहीं है। हमारी बेहोशी टूटे तो ही हम सही मायने में धर्म को जी सकते हैं, तो ही हम आत्मनिष्ठ और परमात्म-निष्ठ हो सकते हैं, अन्यथा सब लीपापोती है, भेड़-धसान है। संसार तो बेहोशी का विस्तार मात्र है । हम प्राय: बेहोशी में ही जीवन पूरा कर लेते हैं। हमारा संसार बेहोशी 20 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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