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________________ तक गलत काम करते हो तो बात समझ में आती है, मगर आकांक्षाओं का तो कहीं कोई अंत ही नहीं है फिर उनके मायाजाल में क्यों फंस रहे हो। आदमी जब इच्छाओं का गुलाम बनकर उनकी पूर्ति के लिए भागदौड़ करने लगता है, तो उसके जीवन में सुख की बजाय दुःखों में वृद्धि होने लगती है। इच्छाओं को रबर की तरह खींचना बंद करें, ताकि तुम्हारे जीवन में जो तनाव बढ़ता जा रहा है, वह कम हो सके। आदमी प्रवचन सुनने जाता है, गुरु महाराज की शरण में जाता है, लेकिन उसका तनाव कम नहीं होता। वह अपने मन को एकाग्र नहीं कर पाता। एकाग्रता का पहला सूत्र यह है कि आदमी अपनी इच्छाओं पर लगाम लगाए, अंकुश लगाए। आज से पचास साल पहले आदमी की आवश्यकताएँ सीमित थीं, तो आकांक्षाएँ भी कम थीं, मगर भौतिकता की दौड़ में आदमी इतना अधिक आगे चला गया कि उसके सुख, शांति, सुकून सब पीछे छूट गए। पहले आपके मन में टी.वी. नहीं आता था, हवाई जहाज नहीं आता था, मगर आज टी.वी. ने आपका बहुत सारा समय छीन लिया है। आपकी सामाजिक एवं पारिवारिक शांति तथा व्यवस्था खतरे में पड़ती जा रही है। आप जरूरी काम भी छोड़ देंगे, मगर अमुक धारावाहिक देखना नहीं चूकेंगे क्योंकि हमारी प्राथमिकताएँ ही बदल गई इंसान जैसे-जैसे प्रगति कर रहा है, भीतर से उसकी अवनति हो रही है। वह अंधेरे की ओर जा रहा है। इसका कारण जीवन में बढ़ती हुई हमारी आकांक्षाएँ हैं । जरा सोचें कि जब दुनिया से रवाना होंगे तो केवल पाँच फीट जमीन हाथ लगेगी। उस पर भी आपकी राख ही मिलेगी। माटी में माटी (शरीर) मिल जाएगी। इसलिए जड़ पदार्थ से मोह छोड़ो, चेतन के प्रति बोध जगाओ और फिर उससे भी ऊपर उठ जाओ। हम चेतन में जीकर चिन्मय हो जायें, यही एक-मात्र लक्ष्य होनी चाहिए। आदमी माटी के इस शरीर को सोने, चांदी से सजाता है। वह यह भूल जाता है कि ये भी तो एक तरह से चमकीली माटी ही है। आदमी माटी को माटी से ही सजा रहा है। आदमी छोटा-सा है मगर उसके अरमान, आकांक्षाएँ काफी ऊंचे हैं। पाँच फुट की इस काया में कितने लम्बे-चौड़े अरमान समाए हुए हैं ! हमें दूकान, मकान और रिश्तों में बदलाव नहीं लाना है। हमें अपनी जिन्दगी को बदलना है। संसार में जीओ तो ऐसे जैसे कीचड़ में कमल रहता है। भरत और जनक भले ही संन्यासी नहीं बने, मगर उन्होंने ऐसा जीवन जिया कि वे समाधि को आत्मसात् कर गए। भरत ने तो गृहस्थ जीवन में रहते हुए भी परम ज्ञान पा लिया था। __घर में रहना बुरा नहीं है। हम घर में रहें, लेकिन आसक्ति के धागों को पहचानें। अगर ऐसा नहीं किया तो आने वाला कल ऐसा होगा कि जब हम मृत्यु के निकट होंगे, तो हमारे दिमाग में परमात्मा का नामो-निशान तक नहीं होगा। मृत्यु मनुष्य के जीवन की परीक्षा है। जिस व्यक्ति ने जीते जी कुछ पाया, वही मरते समय कुछ उपलब्ध करके जाएगा। जिसने जीवन निरर्थक गँवाया, वह तो उत्तीर्ण नहीं होगा। इस परीक्षा में उसे शून्य अंक मिलेगा। हमें चिंतन करना चाहिए कि हम उत्तीर्ण होने के करीब कैसे पहुंचें? लोग कहते हैं- अभी जल्दी क्या है, बाद में राम का नाम जप लेंगे। अरे, अभी जब समय तुम्हारे पास है, Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003859
Book TitleAdhyatma ka Amrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2010
Total Pages112
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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