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ध्यानयोग-विधि-२ करें, लेकिन शिथिलता के स्थान पर प्रत्येक अंग में प्रसन्नता और मुस्कराहट को विकसित करें । पैर के अंगूठे से प्रारम्भ कर सिर तक यानी रोम-रोम को प्रमुदितता और अन्तर्-प्रसन्नता का आत्म-सुझाव दें। अंत में अपने चेहरे पर विशेषकर होंठ, आंख और मस्तिष्क पर आनन्द-भाव को केन्द्रित करें और मन-ही-मन मुस्कुराएँ-खिलखिलाएँ । यदि अब भी तनाव महसूस हो, तो खिलखिलाकर हँसते हुए लोटपोट हो जाएँ।
आत्मनिरीक्षण करें और देखें कि यदि अब भी तनाव बाकी है तो हास्य को और विकसित करें और तब तक हँसें, खिलखिलाएँ जब तक थक न जाएँ।
हँसते हुए लोटपोट हो जाना अपने आप में तनाव-मुक्ति का सबसे सरल साधन है । जो हर हाल में प्रसन्न, प्रमुदित रहते हैं, वे तनावरहित होते हैं । मनुष्य के शरीर में ६५० मांसपेशियाँ होती हैं, एकमात्र हँसने से ही दो-तिहाई मांस-पेशियों के साथ शरीर की सभी कोशिकाएं एवं केन्द्रीय तन्त्रिका-तन्त्र प्रफुल्लित हो उठता है और मनोमस्तिष्क भी खिल उठता है ।
हो सकता है इस प्रक्रिया में हंसते-हंसते हमारी रुलाई फूट पड़े और हम जोर-जोर से रोने लगें पर उसे रोकने का प्रयास न करें । खुलकर रो लें। आँसुओं के ये फूल गुरु-चरणों में अर्पित करें और तनाव-मुक्त हो जाएँ।
अवसाद के रोगी इस प्रक्रिया को प्रतिदिन अपनाएँ , तो लगातार तीन माह के प्रयोग से वे रोग-मुक्त हो सकते हैं।
संबोधि-ध्यान
४५ मिनट
सायंकालीन ध्यान के लिए गुरुदेव द्वारा जो विधि आविष्कृत है, उसे संबोधि-ध्यान की संज्ञा दी गई है । संबोधि का शाब्दिक अर्थ है - सम्यक् बोध या सम्पूर्ण बोध । संबोधि-ध्यान की विधि हमारी चेतना पर आच्छादित कषायों के आवरणों को हटाकर शुद्ध, संबुद्ध चैतन्य को प्रकट करने में बहुत ही सहायक हो सकती है। वस्तुत: दिनभर हमारी चेतना सांसारिक प्रवृत्तियों में
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