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ध्यानयोग-विधि-१
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यह नाड़ी-शुद्धि का एक चक्र है, इसे नौ बार दोहराएँ। साँस भरते हुए उसकी शीतलता और छोड़ते हुए ऊष्मा का अनुभव करें।
खाली पेट, शौच से निवृत्त होकर सूर्योदय से पूर्व या सूर्यास्त के पश्चात् इसका अभ्यास करें । जो लोग योगाभ्यास के लिए समय न निकाल पाएँ, वे नाड़ी-शोधन प्राणायाम अवश्य ही कर लें।
लाभ : तीन से छह माह के निरन्तर एवं मनोयोग पूर्ण अभ्यास से इसके लाभ प्रत्यक्ष होने लगते हैं। शरीर हल्का एवं कान्तिमय हो जाता है। आँखों की चमक विकसित होती है। भूख बढ़ती है । शारीरिक एवं मानसिक एकाग्रता का विकास होता है । चित्त की चंचलता और कषायों का शमन होता है। ज्ञान-शक्ति, मेधा, प्रतिभा का प्रस्फुटन होता है। शरीर के मोह से मुक्त होकर चैतन्य अनुभव होता है। चैतन्य-ध्यान
४५ मिनट प्रार्थना, आसन, प्राणायाम के अभ्यास से ध्यान में उतरने की भूमिका बन जाती है। शरीर की जड़ता एवं मन की तंद्रिलता समाप्त होकर प्रफुल्लता का विकास होता है। हम स्थूल से सूक्ष्म की ओर अभिमुख हुए। इस भाव-भूमि पर ध्यान का अवतरण सहज संभव है। अत: अब साधकों को प्रात:कालीन ध्यान की साधना करनी चाहिए। चैतन्य-ध्यान में प्राणायाम,
ओंकार मंत्र और आत्म-सजगता का सम्मिश्रित आधार देते हुए अन्तर्यात्रा की जाती है । चैतन्य-ध्यान एक प्रकार से ‘ओंकार-ध्यान' है । ओंकार बीज-मन्त्र के द्वारा अन्तर्मन की एकाग्रता, स्वच्छता और चैतन्य-जागरण ही चैतन्य-ध्यान का ध्येय है।
चैतन्य-ध्यान के पाँच चरण हैं -
१ - ओंकारनाद २ - सहज स्मृति ३ - अन्तर्यात्रा
७ मिनट १० मिनट १० मिनट
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